बिहार में सरकार गठन की रणनीति में जुटे बिहार एनडीए के घटक दलों के विधायकों की आज यानी रविवार को बैठक होगी। इससे पहले शुक्रवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी आवास पर एनडीए के प्रमुख नेताओं की बैठक हुई थी। बैठक के बाद नीतीश ने पत्रकारों को बताया था कि 15 नवंबर को दिन में 12.30 बजे एनडीए के घटक दलों के विधायकों की बैठक होगी। बता दें कि शुक्रवार शाम को ही नीतीश ने गवर्नर फागू चौहान को अपना इस्तीफ़ा भेज दिया था और इसके साथ ही विधानसभा भी भंग हो गई। नई विधानसभा के गठन के लिए ऐसा करना ज़रूरी होता है।
बिहार विधानसभा चुनाव में मामूली बहुमत का जनादेश हासिल करने वाले एनडीए ने अभी तक विधायक दल के नेता का चुनाव नहीं किया है। मुख्यमंत्री के पद पर क्या बीजेपी भी दावा कर सकती है, ऐसी अटकलों के बीच ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ करने की कोशिश है कि बिहार में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार ही बैठेंगे। हालांकि इसके पीछे बीजेपी की सियासी मज़बूरी भी है वरना 31 सीटें ज़्यादा होने के बाद भी वह नीतीश को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठाती।
मजबूरी साफ है कि अकेले दम पर वह सरकार बना नहीं सकती, दूसरा कोई दल ऐसा है नहीं जिसके पास इतनी सीटें हो कि 122 के जादुई आंकड़े तक पहुंचा जा सके।
सत्ता में भागीदारी देनी होती तो बीजेपी अपनी बरसों पुरानी सहयोगी शिव सेना को आसानी से दे देती। लेकिन बिहार में वह मजबूर है।
बिहार के राजनीतिक गलियारों से ख़बरें आ रही हैं कि सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के इच्छुक नहीं हैं। इसके पीछे कारण जेडीयू के ख़राब प्रदर्शन को बताया गया है।
जेडीयू का ख़राब प्रदर्शन
चुनाव से पहले यह सवाल लगातार उठता रहा कि अगर जेडीयू की सीटें कम हुईं तो तब भी क्या नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे, बीजेपी नेताओं ने इसके जवाब में नड्डा और अमित शाह का ही बयान दोहराया। इस बयान में जेडीयू की सीटें कम आने की हालात में भी नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाने की बात कही गई थी। चुनाव नतीजों में जेडीयू बीजेपी से 31 सीटें पीछे रह गई है। जेडीयू को इस बार 43 सीटें मिली हैं, जो 2005 के बाद उसका सबसे ख़राब प्रदर्शन है।
इससे ज़्यादा चिंतित करने वाली बात नीतीश कुमार के लिए यह है कि जेडीयू राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है और बीजेपी और आरजेडी से कोसों दूर है। हालांकि पार्टी के नेता इसके लिए एलजेपी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान भी तमाम चैनलों की रिपोर्टिंग के दौरान यह बात सामने आई थी कि राज्य में नीतीश कुमार से लोगों की नाराजगी बढ़ी है।
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‘चुनाव आयोग एनडीए के साथ’
बिहार के चुनावी घमासान में बेहद कम अंतर से सरकार बनाने से चूके आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने चुनाव नतीजों को लेकर चुनाव आयोग पर हमला बोला था। तेजस्वी ने कहा था कि जनता ने अपना फ़ैसला सुनाया है और चुनाव आयोग ने अपना नतीजा सुनाया है। उन्होंने कहा कि जनता का फ़ैसला महागठबंधन के पक्ष में है जबकि चुनाव आयोग का नतीजा एनडीए के पक्ष में है। इससे पहले आरजेडी विधायक दल की बैठक हुई, जिसमें तेजस्वी यादव को विधायक दल का नेता चुना गया था।
तेजस्वी ने चुनाव आयोग पर कटाक्ष करते हुए कहा था कि बीजेपी के प्रकोष्ठ ने तमाम कोशिशें की लेकिन फिर भी वह आरजेडी को बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनने से नहीं रोक सका।
देखिए, बिहार के चुनाव नतीजों पर चर्चा-
निशाने पर कांग्रेस
बिहार में महागठबंधन की मामूली हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा जा रहा है। उसे इस बात के लिए जिम्मेदार बताया जा रहा है कि उसके ख़राब प्रदर्शन के कारण ही महागठबंधन पिछड़ गया और एनडीए को सत्ता में आने का मौक़ा मिल गया। कांग्रेस राजनीतिक विश्लेषकों के निशाने पर भी है। कुछ लोग कांग्रेस को लंगड़े घोड़े की संज्ञा दे रहे हैं और ऐसे में पार्टी के प्रवक्ता भी इस ख़राब प्रदर्शन के लिए पूछे गए सवालों के जवाब देने में निरूत्तर साबित हो रहे हैं।
इसके साथ ही पार्टी नेताओं के भीतर निराशा भी दिखाई देने लगी है। कांग्रेस में फ़ैसले लेने वाली सर्वोच्च संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के सदस्य तारिक़ अनवर ने इस बात को स्वीकार किया है कि पार्टी के ख़राब प्रदर्शन के कारण ही महागठबंधन बहुमत के आंकड़े से दूर रह गया।
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