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बिहार: नीतीश को हटाने के लिए क्या बीजेपी के साथ मिलकर खेल रहे हैं चिराग पासवान?

राजनैतिक प्रेरक्षक मानते हैं कि जिस तरह से लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान नीतीश कुमार सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा में लगे थे, उससे यह संदेश जा रहा था कि बीजेपी की इसपर मौन सहमति है। 
समी अहमद
लोक जनशक्ति पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए से बाहर होकर लड़ेगी। भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड दोनों इस बात को मान चुके हैं कि अब उन्हें लोजपा के बिना चुनाव लड़ना होगा और उसी हिसाब से अपनी तैयारियाँ शुरू कर दी हैं।
राजनैतिक सू़त्रों का मानना है कि जदयू-बीजेपी और जीतन राम मांझी के लिए सीटों का बंटवारा भी तय हो चुका है। आरंभिक सूचना के अनुसार जदयू-बीजेपी 119-119 और 'हम' 5 सीटों पर चुनाव लड़ने को राजी हो सकते हैं, लेकिन इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। जदयू के कुछ सूत्र बताते हैं कि उनका दल बीजेपी से कम से कम 10 अधिक सीटों पर लड़ना चाहता है। रविवार को बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर लोजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए से अलग होकर लड़ने की बात पर मुहर लगा दी।
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इस बारे में जदयू के प्रवक्ता अरविंद कुमार ने सत्य हिन्दी से बातचीत में कहा कि जदयू और बीजेपी 2005 और 2010 में चुनाव लड़कर जीती है और इस बार भी दोनों दल मजबूती से चुनाव लड़ेंगे। सीट बंटवारे के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह शीर्ष नेतृत्व तय करेगा।

सत्ता की चाबी

जदयू और बीजेपी के गठबंधन की पहली सरकार 2005 के अक्टूबर में साल के दूसरे विधानसभा चुनाव के बाद बनी थी। तब जदयू ने 139 और सीटों पर उम्मीदवार खड़े थे, जिनमें से 88 को जीत हासिल हुई। बीजेपी ने 55 सीटों पर जीत हासिल की थी। इससे पहले फरवरी 2005 में हुए विधान सभा चुनाव में जदयू के 138 उम्मीदवारों में से 57 उम्मीदवार जीते थे। बीजेपी को 37 सीटें मिली थीं।
इस चुनाव में राजद ने सर्वाधिक 81 सीटें जीती थीं, लेकिन इस त्रिशंकु विधानसभा में लोजपा ने 29 सीटें लेकर किसी दल को समर्थन न देने का फैसला किया। इसके कारण राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा था।
उस वक्त रामविलास पासवान की यह बात बहुत मशहूर हुई थी कि सरकार बनाने की चाबी उनके पास है। उस समय लोजपा ने 178 उम्मीदवार खड़े किये थे। नवंबर में हुए अगले चुनाव में जदयू और बीजेपी गठबंधन एनडीए ने 141 सीट लाकर इस चाबी की अहमियत खत्म कर दी।
खुद लोजपा की 29 सीटें घटकर 19 हो गयी थीं।

गठबंधन बीजेपी से

लोजपा और जदयू दोनों यह कहते आ रहे थे कि उनका गठबंधन बीजेपी से है और बीजेपी ने प्रत्यक्ष रूप से यही कोशिश की कि लोजपा एनडीए में बनी रहे। इस बाबत बीजेपी के प्रवक्त प्रेम रंजन पटेल ने सत्य हिन्दी से कहा कि लोजपा एनडीए से बाहर गयी है और इस निर्णय के बाद बीजेपी जदयू के साथ चुनाव लड़ने पर ध्यान लगाएगी। उन्होंन सीट बंटवारे की चल रही ख़बरों के बारे में कहा कि अभी आधिकारिक रूप से कोई घोषणा नहीं हुई है।
राजनैतिक प्रेरक्षक मानते हैं कि जिस तरह से लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान नीतीश कुमार सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगा रहे थे और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा में लगे थे, उससे यह संदेश जा रहा था कि बीजेपी की इसपर मौन सहमति है।
अगर लोजपा 143 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करती है तो यह देखना दिलचस्प होगा कि वह किन सीटों पर उम्मीदवार नहीं देती है। समझा जाता है लोजपा अधिकतर उन्हीं सीटों पर अपने उम्मीदवार देगी जहां से बीजेपी के उम्मीदवार नहीं होंगे।

बात कैसे बिगड़ी?

पिता रामविलास पासवान के गंभीर रूप से बीमार पड़ने के बाद लोजपा की कमान संभाल रहे चिराग पासवान अपनी पार्टी के लिए अधिक सीटें चाह रहे थे। साथ ही उनके दल के लोग चिराग को उप मुख्यमंत्री बनवाना चाह रहे थे। इसके साथ ही चिराग पासवान बार-बार नीतीश कुमार सरकार पर हमले कर रहे थे। उनका आरोप था कि बिहार सरकार में लोजपा की बात मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नहीं सुनते।
उन्होंने नीतीश की बहुप्रचारित सात निश्चय योजना को जदयू का कार्यक्रम बताकर मांग की थी कि एनडीए का अपना न्यूनतम साझा कार्यक्रम बने। उन्होंने सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार का भी आरोप लगाया था। यही नहीं, कई बार चिराग पासवान का स्टैंड राजद के तेजस्वी यादव से मिलता जुलता नज़र आता था। चिराग भी तेजस्वी की तरह कोरोना के कारण चुनाव को आगे बढ़ाने के पक्षधर थे।
चिराग पासवान के अलग लड़ने से बिहार में चुनावी राजनीति की बिसात एक बार फिर नये सिरे बिछेगी। चुनाव के दौरान इसके रवैये से चुनाव परिणाम पर असर पड़ने की संभावना है। इसके बाद सत्ता की चाबी क्या रामविलास पासवान के पास होगी, यह 10 नवंबर को पता चलेगा।
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