बिहार में जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, राजनीतिक दलों में सीटों के बंटवारे को लेकर घमासान बढ़ता जा रहा है। सबसे ज्यादा सिर फुटौव्वल विपक्षी महागठबंधन में है। हालांकि महागबंधन में अभी तक सीटों के बंटवारे को लेकर कोई फॉर्मूला तय नहीं हुआ है, लेकिन कांग्रेस के साथ ही सभी छोटे-छोटे घटक दल भी आरजेडी पर लगातार दबाव बना रहे हैं। लेकिन लालू प्रसाद यादव की आरजेडी कुशवाहा, मांझी और मुकेश सहनी के प्रेशर में आने के मूड में नहीं दिखती।
आरजेडी का कड़ा रूख़
गौरतलब है कि हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी के साथ ही राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) अधिक सीटों के लिए आरजेडी पर दबाव बनाए हुए हैं और ये पार्टियां ये भी चाहती हैं कि बातचीत के लिए को-ऑर्डिनेशन कमेटी बने। इसके जवाब में आरजेडी ने दो टूक कह दिया है कि सही प्लेटफॉर्म पर बातचीत की जा सकती है लेकिन महागठबंधन के नेता के सवाल पर बहस की गुंजाइश नहीं है।
गौरतलब है कि आरजेडी का आंतरिक आकलन यह भी है कि कांग्रेस इन तीनों दलों को इस्तेमाल कर रही है। आरजेडी किसी भी क़ीमत पर आरएलएसपी, हम व वीआईपी को 10-10 से अधिक सीटें देना नहीं चाहती है।
कांग्रेस ने 80 सीटों पर दावा ठोका
उधर, विधानसभा में कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह ने यह कह कर सबको सकते में डाल दिया है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कम से कम 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और इससे कम सीटों पर चुनाव मैदान में नहीं जाएगी। उन्होंने अपनी मांग से पार्टी आलाकमान को भी अवगत करा दिया है। हाल में पार्टी के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल के साथ हुई बैठक में भी यह मुद्दा उठाया गया था। अपनी मांग को जायज बताते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर की पार्टी है।
पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) भी महागठबंधन की सहयोगी थी, लेकिन इस बार जेडीयू महागठबंधन का हिस्सा नहीं है। कांग्रेस का कहना है कि ऐसे में उसकी हिस्सेदारी वाली सीटों पर कांग्रेस की दावेदारी बनती है।
शक्ति सिंह गोहिल ने भी कहा है कि कांग्रेस सम्मानजनक सीटों की मांग करेगी और उम्मीद है कि आरजेडी या दूसरे सहयोगियों को इससे कोई एतराज नहीं होगा।
101 सीटों को लेकर झगड़ा
असल में झगड़ा विधानसभा की 101 सीटों का माना जा रहा है। 2015 के चुनाव में महागठबंधन की ओर से जेडीयू को 101 सीटें दी गई थीं। जेडीयू के निकलने के बाद नए घटक दलों- आरएलएसपी, हम और वीआईपी की नजर इन्हीं सीटों पर है। इन सीटों में कांग्रेस की भी दिलचस्पी है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस 41 सीटों पर लड़ी थी और इस बार वह उससे अधिक सीटों पर लड़ना चाहती है। रणनीति यह है कि ये तीनों दल आरजेडी पर दबाव बनाएं और कांग्रेस को बीच-बचाव का मौका मिल जाए। इसी कोशिश में कांग्रेस के पास भी कुछ अधिक सीटें आ जाएं।
आरजेडी की अलग तैयारी
इधर, आरजेडी कुल 243 सीटों मे से कम से कम 163 सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रही है। उसकी झोली में आरएलएसपी के लिए 20 और हम तथा वीआईपी के लिए 10-10 सीटें हैं। बाकी सीटें कांग्रेस और वाम दलों के लिए है। वह उन सामाजिक समूहों को पार्टी की विचारधारा से जोड़ने की मुहिम में है, जिनकी नुमाइंदगी का दावा उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी करते हैं।
आरजेडी लगातार इन सामाजिक समूहों के बड़े नेताओं को जोड़ने की कोशिश भी कर रही है। जगदानंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष, मनोज झा और एडी सिंह को राज्यसभा में भेजकर आरजेडी ने बड़े सामाजिक दायरे को प्रभावित करने की रणनीति को पहले ही जाहिर कर दिया है।
नेता के नाम पर सवाल नहीं
महागठबंधन में बार-बार यह सवाल उठता रहता है कि अगले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री के तौर पर किसे प्रस्तावित किया जाएगा? आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, ‘यह सवाल ही ठीक नहीं है। विधानसभा में विपक्ष का नेता ही मुख्यमंत्री का विकल्प होता है।’ जाहिर है, इसके बाद तेजस्वी यादव के अलावा कोई और नेता मैदान में नहीं दिखता। तिवारी कहते हैं कि तेजस्वी यादव के अलावा किसी दूसरे नाम की चर्चा भी उन्हें मंजूर नहीं है।
असमंजस में है कांग्रेस
इस मामले पर कांग्रेस पार्टी के भीतर अभी असमंजस की स्थिति है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा ने कहा कि उन्हें यह जानकारी नहीं है कि सदानंद सिंह ने क्या कहा है। उन्होंने कहा कि पहले महागठबंधन के सहयोगियों के साथ बैठक होगी और बैठक में ही तय होगा कि कांग्रेस कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पिछले विधानसभा चुनाव में आरजेडी 81 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं।
यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि झारखंड में आरजेडी का जेएमएम के साथ गठबंधन है। जेएमएम भी बिहार में कुछ सीटों की मांग कर सकता है और अगर ऐसा हुआ तो वे सीटें आरजेडी के कोटे से ही जाएंगी।
बहरहाल, सबकुछ ठीक रहा तो बिहार में अक्टूबर या नवंबर में विधानसभा चुनाव हो जाएंगे। नीतीश कुमार चौथी बार बड़ी जीत हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। लालू प्रसाद यादव जेल में हैं। तेजस्वी कितना हालात को संभाल पाते हैं, इस पर ही महागठबंधन का भविष्य निर्भर करता है।
अपनी राय बतायें