राजनीति में कब कौन सिकंदर बन जाए और कौन कब चूक जाए, कहा नहीं जा सकता। ऐसा ही कुछ छत्तीसगढ़ में हुआ, जहाँ मुख्यमंत्री के चयन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी को भी अपना फ़ैसला बदलना पड़ा। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सांसद ताम्रध्वज साहू मुख्यमंत्री नहीं बन सके, जबकि कांग्रेस आलाकमान उनके नाम पर फ़ैसला ले चुका था। राज्य में ताम्रध्वज साहू, भूपेश बघेल, चरणदास महंत और टीएस सिंह देव मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे।
मुख्यमंत्री के चयन को लेकर दावेदारों की जो भागदौड़ रही, उससे मिली जानकारी के मुताबिक़, भूपेश बघेल के मुख्यमंत्री बनने से पहले राहुल गाँधी और सोनिया कांग्रेस सांसद ताम्रध्वज साहू को मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला ले चुके थे। छत्तीसगढ़ के पर्यवेक्षक के तौर पर चुने गए कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे 12 दिसंबर की शाम को रायपुर पहुँचे थे जहाँ उन्होंने पार्टी के 68 विधायकों से मुलाकात कर उनकी राय जानी थी। मुख्यमंत्री पद पर सहमति न बन पाने पर पार्टी ने शक्ति ऐप के माध्यम से कांग्रेस कार्यकर्ताओं की राय जानी। लेकिन फ़ैसला नहीं हो पा रहा था। 13 दिसंबर को खड़गे दिल्ली लौट गए।
साहू के ख़िलाफ़ थे अन्य दावेदार
सूत्रों के मुताबिक़, 15 दिसंबर को कांग्रेस आलाकमान मुख्यमंत्री पद पर साहू के चयन को लेकर मन बना चुका था। इस दिन मल्लिकार्जुन खड़गे की मेज पर लड्डू का डिब्बा रखा हुआ था। लेकिन मुख्यमंत्री पद के अन्य तीन दावेदार भूपेश बघेल, टी.एस. सिंह देव और चरण दास महंत, साहू के मुख्यमंत्री बनने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ थे।
जानकारी के मुताबिक़, बघेल और सिंह देव दोनों का ही कहना था कि कांग्रेस की जीत में साहू की भूमिका बहुत कम है और राज्य में उनका बहुत ज़्यादा जनाधार भी नहीं है। यह भी जानकारी है कि बघेल ने कांग्रेस आलाकमान को साफ़ कह दिया था कि वे शपथ भी नहीं लेंगे और प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष पद से भी इस्तीफ़ा देकर एक सामान्य कार्यकर्ता के रूप में काम करेंगे। सिंह देव भी इसके लिए तैयार नहीं थे और उन्होंने कांग्रेस आलाकमान से कहा कि पहले वे कार्यकर्ताओं से इस बारे में बात करेंगे।
इसके बाद राहुल गाँधी ने चारों दावेदारों को फिर से अपने घर बुलाया। बघेल और सिंह देव ने राहुल को बताया कि वे दोनों बारी-बारी से मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हैं। सिंह देव ने कहा कि पहले 2 साल के लिए वे मुख्यमंत्री बनेंगे और फिर बचे हुए 3 साल के लिए बघेल को कुर्सी सौंप देंगे। हालाँकि बघेल ने पहले मुख्यमंत्री बनने के लिए अपना दावा पेश किया। सूत्रों के मुताबिक़, बघेल और सिंह देव के बीच सहमति न बनने से पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, साहू के नाम पर फ़ैसला ले चुके थे।
ओबीसी नेता ही बने मुख्यमंत्री
समस्या को सुलझाने के लिए राहुल ने राज्य में पार्टी के प्रभारी पीएल पूनिया से बातचीत की और बघेल और सिंह देव को ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने की सहमति बनी। बघेल के पक्ष में यह बात गई कि राज्य में मुख्यमंत्री के तौर पर एक ओबीसी नेता की जरूरत है। इसके बाद साहू मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर हो गए और अपने घर चले गए। पार्टी प्रभारी ने राहुल को बताया कि छत्तीसगढ़ में ओबीसी समुदाय की आबादी अधिक है, इसलिए मुख्यमंत्री ओबीसी होना चाहिए।
ओबीसी नेता की इस गणित में बघेल, साहू और महंत तो फ़िट थे लेकिन सिंह देव नहीं। अब सिंह देव भी दौड़ से बाहर हो गए। बचे थे बघेल और महंत। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते बघेल की पकड़ ज़्यादा मजबूत थी इसलिए आलाकमान को बघेल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए तैयार होना पड़ा। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों के मुताबिक़, मुख्यमंत्री पद के एक अन्य दावेदार चरणदास महंत को जल्द ही स्पीकर बनाए जाने की संभावना है। इसके बाद बघेल की राह आसान हो गई और आलाकमान को उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाने के लिए राजी होना पड़ा।
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