जिस समय असम भीषण बाढ़ की तबाही को झेल रहा है उस समय यह तथ्य सामने आया है कि असम को 2014 से बाढ़ नियंत्रण के लिए राज्य आपदा प्रबंधन कोष में कोई केंद्रीय सहायता नहीं मिली है। ज़िम्मेदारी से बचने के लिए राज्य सरकार की तरफ़ से अब सारा दोष अकाउंटेंट जनरल यानी एजी कार्यालय के ग़लत हिसाब-किताब के सर मढ़ दिया गया है।
इस बात का खुलासा एक आरटीआई के ज़रिये हुआ है। राज्य सरकार के राजस्व और आपदा प्रबंधन विभाग ने आरटीआई के जवाब में कहा, ‘असम सरकार को 2014-18 की अवधि के दौरान भारत सरकार से बाढ़ नियंत्रण के लिए कोई सहायता नहीं मिली है।’ जिसका अर्थ है कि पिछले 6 वर्षों से लेखांकन की समस्या है और इसे हल नहीं किया जा सका है। यह सुनने में थोड़ा अटपटा लगता है।
2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के अनुसार राज्य आपदा प्रबंधन कोष संबंधित राज्य और केंद्र दोनों के योगदान से बनाया जाता है, जिसमें केंद्र आमतौर पर 75% राशि प्रदान करता है। लेकिन असम जैसे विशेष श्रेणी के राज्यों के लिए केंद्रीय हिस्सेदारी 90% है।
ये प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए राज्यों को उपलब्ध प्राथमिक धन हैं। आरटीआई के जवाब में दिये गए आँकड़े के अनुसार असम ने अन्य स्रोतों से 2014- 15 में 288.6 करोड़ रुपये, 2015- 16 में 414 करोड़ रुपये, 2016- 17 में 434.70 करोड़ रुपये और 2017- 18 में 456 करोड़ रुपये प्राप्त किए।
यदि राज्य आपदा प्रबंधन कोष में धन कम हो जाता है तो राज्य केंद्रीय गृह मंत्रालय को ज्ञापन सौंपकर अपने नुक़सान का ब्यौरा देते हुए अतिरिक्त सहायता की माँग करता है। हालाँकि ज्ञापन अतिरिक्त सहायता के स्रोत को निर्दिष्ट नहीं करता है, केंद्र आमतौर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष से धन मुहैया करता है।
गृह मंत्रालय के आँकड़ों से पता चलता है कि 2014 और उसके बाद हर साल बाढ़ में पर्याप्त जान-माल का नुक़सान झेलने के बावजूद असम को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष के तहत कोई सहायता नहीं मिली है।
2014 में जब बाढ़ ने असम में 40 लाख लोगों को प्रभावित किया और लगभग 70 लोगों की मौत हो गई थी, असम ने 9,370 करोड़ रुपये की माँग करते हुए एक ज्ञापन सौंपा था। अगले साल, जिसमें फिर बाढ़ से व्यापक नुक़सान हुआ, राज्य ने 2,100 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सहायता का अनुरोध किया। 2016 में असम ने प्राकृतिक आपदा से हुए नुक़सान से निपटने के लिए फिर से 5,038 करोड़ रुपये की माँग की। 2017 में, जब असम को हाल के दिनों में सबसे भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ा, तो राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अतिरिक्त सहायता नहीं ली, हालाँकि इसने लगभग 4,000 करोड़ रुपये का नुक़सान उठाया।
बाढ़ के मद्देनज़र राज्य का दौरा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर में सभी बाढ़ प्रभावित राज्यों के लिए 2,350 करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की, असम के लिए तुरंत 250 करोड़ रुपये जारी करने का वादा किया। लेकिन पैसा कभी नहीं आया।
जाहिर तौर पर इसका कारण अकाउंटेंट जनरल के कार्यालय द्वारा लेखा त्रुटि बताया गया है। राज्य के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘जब राज्य आपदा प्रबंधन कोष में धन की कमी होती है तब केंद्र अतिरिक्त धनराशि आवंटित करता है, लेकिन एजी के कार्यालय द्वारा एक लेखांकन त्रुटि के कारण हमारे खाते में ऐसी राशि दिखाई देती है जो वास्तव में हमारे पास नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘चूँकि गृह मंत्रालय एजी के कार्यालय से खाते की शेष राशि का आँकड़ा लेता है, इसीलिए हमें बताया गया है कि हम पात्र नहीं हैं।’ अधिकारी ने कहा कि त्रुटि को अब ठीक किया जा रहा है: ‘लगभग 90% त्रुटि को ठीक कर दिया गया है, इसलिए हमें अगले वर्ष तक केंद्रीय सहायता के लिए योग्य हो जाना चाहिए।’
दूसरी तरफ़ असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरुण गोगोई ने केंद्र और राज्य सरकारों को राज्य में बाढ़ की स्थिति से निपटने में नाकाम रहने के लिए आलोचना की है। गोगोई ने कहा, ‘असम कोविड -19, बाढ़ और कटाव से उत्पन्न समस्याओं की स्थिति में सरकार के ग़लत, अनियोजित और अविवेकपूर्ण प्रबंधन के कारण सबसे ख़राब संकट के दौर से गुज़र रहा है।’
गोगोई ने कहा, ‘उचित समय पर तटबंधों की मरम्मत और कटाव-रोधी योजनाओं के क्रियान्वयन जैसे पर्याप्त उपाय करने में सरकार की विफलता के कारण असम अब एक बड़े संकट से गुज़र रहा है। बाढ़ और कटाव के चलते राज्य में अब तक 50 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। इसके बावजूद न तो भारत सरकार और न ही असम सरकार ने समस्या की गंभीरता को महसूस किया है। हमारा राज्य बदतर दौर से गुज़र रहा है और अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय असम के दौरे पर आना उचित नहीं समझते हैं तो यह साबित होगा कि वह मगरमच्छ के आँसू बहाने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं।’
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