उत्तर भारत में 2019 में लोकसभा सीटों के नुक़सान की भरपाई पूर्वोत्तर राज्यों से करने की बीजेपी की मंशा पर पानी फिर सकता है। नागरिकता विधेयक को लेकर बीजेपी के एक धड़े और समर्थक दलों में काफ़ी आक्रोश है और यह आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। इस मुद्दे पर असम गण परिषद के अलावा पूर्वोत्तर के 10 समर्थक राजनीतिक दलों ने नागरिकता विधेयक का जमकर विरोध करने का एलान किया है, हालाँकि अभी वे एनडीए में बने रहेंगे।
इस बीच नगालैंड सरकार ने भी नागरिकता विधेयक का विरोध किया है। एनडीए शासित राज्यों में नगालैंड ऐसा तीसरा राज्य है जिसने खुले तौर पर बीजेपी के इस विधेयक का विरोध किया है। इससे पहले मिज़ोरम और मेघालय की सरकारें पहले ही विरोध कर चुकी हैं। त्रिपुरा में बीजेपी के ही एक बड़े आदिवासी नेता ने इस्तीफ़ा दे दिया है।
राष्ट्रपति से लगाएँगे गुहार
गुवाहाटी में मंगलवार को हुई इन दलों की संयुक्त बैठक में शीघ्र ही इस विधेयक को रद्द करने की माँग पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से गुहार लगाने का फ़ैसला किया गया है। पूर्वोत्तर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के सम्मेलन में भाग लेने के बाद नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के अध्यक्ष और मेघालय के मुख्यमंत्री कोनरैड संगमा ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी। उन्होंने बताया, ‘पूर्वोत्तर क्षेत्र के नागरिकों की भावना एवं उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ही इस सम्मेलन का आयोजन हुआ है। इसमें कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं छुपा हुआ है। सम्मेलन में पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी क्षेत्रीय पार्टियों ने इस विधेयक के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ने का फ़ैसला किया है।'
कोनरैड संगमा ने कहा, ‘यह एक स्वाभाविक सहमति है और इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से देखना ग़लत होगा। क्योंकि, इस विधेयक को लेकर क्षेत्र के नागरिकों की भावना जुड़ी हुई है। हमें हमारे लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना ही होगा। इसलिए सभी क्षेत्रीय दल इस मुद्दे पर एकजुट हुए हैं।'
- उन्होंने आगे बताया, ‘हम इस सम्मेलन में राजनीतिक उद्देश्य से भाग नहीं ले रहे हैं तथा इसका आयोजन भी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं हुआ है। सिर्फ़ मुद्दे के आधार पर ही इस सम्मेलन का आयोजन हुआ है ताकि इस विधेयक के ख़िलाफ़ देश के सभी राजनीतिक दलों तक पहुँचना है जो इस विधेयक का विरोध करते हैं।'
संगमा ने बताया कि बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि एनडीए में रहकर ही नागरिकता विधेयक का विरोध किया जाएगा। बैठक में एक अन्य फ़ैसले के तहत देश भर के उन सभी राजनीतिक दलों को धन्यवाद दिया गया जिन्होंने लोकसभा के भीतर और बाहर इस विधेयक का विरोध किया। इसके अलावा देशभर के विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए विधेयक विरोधी आवाज़ को बुलंद करने के लिए शीघ्र ही एक कमेटी के गठन का फ़ैसला किया गया।
- बैठक के बाद असम गण परिषद (एजीपी) अध्यक्ष अतुल बोरा ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक-2016 का उनकी पार्टी पहले से ही विरोध करती आ रही है। बीजेपी-एजीपी-बीपीएफ़ मित्रदल की सरकार से भी नाता तोड़ लिया। अब पूर्वोत्तर के सभी क्षेत्रीय पार्टियों ने एकजुट होकर इस विधेयक के ख़िलाफ़ लड़ने का फ़ैसला किया है।
पूर्वोत्तर क्षेत्रीय राजनीतिक सम्मेलन में भाग लेनेवाले नेताओं में एजीपी के पूर्व अध्यक्ष और विधायक प्रफुल्ल कुमार महंत, एनपीपी के उपाध्यक्ष प्रिस्टोंग टिनसोंग, मिज़ोरम के मुख्यमंत्री तथा मिज़ो नेशनल फ्रंट के अध्यक्ष जोरमथांगा, नगालैंड के पूर्व मुख्यमंत्री तथा एनपीएफ़ नेता टी. आर. जेलियांग, एनडीपी के अध्यक्ष चिंगवांग कोन्याक, मेघालय विधानसभा के अध्यक्ष तथा यूडीपी के अध्यक्ष डॉ. डंगकुपर राय, मणिपुर के उप-मुख्यमंत्री जय कुमार सिंह, त्रिपुरा सरकार में मंत्री तथा आईपीटीएफ़ के महासचिव मेवेर कुमार जमातिया, एचएसपीडीपी के अध्यक्ष केपी पंगाईंग, मेघालय सरकार में मंत्री समलिन मलंगियांज, पीडीएफ के अध्यक्ष इवानलुमियाज मार्पानियांग, केएचएनएएम के विधायक एडेलबार्ट नंगु्रुम और जनता दल (यू) के पूर्वोत्तर इकाई के अध्यक्ष एनएस लोथा सहित कई नेता शामिल थे।
एनडीए शासित नगालैंड भी विरोध में
नगालैंड ने भी अब नागरिकता विधेयक का विरोध किया है। एनडीए शासित राज्यों में नगालैंड ऐसा तीसरा राज्य है जिसने खुले तौर पर बीजेपी के इस विधेयक का विरोध किया है। इससे पहले मिज़ोरम और मेघालय की सरकारें पहले ही विरोध कर चुकी हैं। नगालैंड में कैबिनेट ने सोमवार को यह साफ़ कर दिया कि राज्य सरकार शुरुआत से ही इस बिल के विरोध में रही है। राज्य में एनडीपीपी के नेतृत्व में पीपल्स डेमोक्रेटिक अलायंस की सरकार और बीजेपी भी इसमें शामिल है।
आदिवासी नेता ने बीजेपी को छोड़ा
त्रिपुरा में बीजेपी के एक बड़े आदिवासी नेता राजेश्वर देबबर्मा ने नागरिकता विधेयक के विरोध में पार्टी छोड़ दी है। उन्होंने अपना इस्तीफ़ा सोमवार को ही सौंप दिया है। वह पिछले साल विधानसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे। त्रिपुरा बीजेपी प्रमुख बिप्लब कुमार देब को भेजे इस्तीफ़े में उन्होंने लिखा है, 'मैंने ग़ौर किया है कि बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने साफ़ तौर पर त्रिपुरा के लोगों के प्रति जातीय भेदभाव और बुरा रवैया दिखाया है।'
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