एनआरसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा है कि गृह मंत्रालय एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजंस) की प्रक्रिया को बर्बाद करने की कोशिश कर रहा है। कोर्ट ने सख़्त टिप्पणी करते हुए कहा कि एनआरसी की प्रक्रिया को लटकाने के लिए गृह मंत्रालय कई तरह के बहाने बना चुका है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हम इस तरह के रवैये से बहुत निराश हैं।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने नाराज़ होते हुए कहा कि क्या हमें गृह सचिव को समन जारी करना होगा। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में वह अटॉर्नी जरनल और सॉलिसिटल जरनल के जवाब से वह संतुष्ट नहीं है। बता दें कि अदालत ने एनआरसी की फ़ाइनल ड्राफ़्टिंग के लिए इस साल 31 जुलाई तक का समय दिया है।
सुनवाई के दौरान सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जरनल के. के. वेणुगोपाल ने कहा कि गृह मंत्रालय को लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए 167 पैरामिलिट्री कंपनियों को वापस बुलाना होगा। इन कंपनियों को एनआरसी ड्यूटी में लगाया गया था।
बता दें कि एनआरसी को लेकर पिछले साल जमकर हंगामा हुआ था। इस रजिस्टर में 2.89 करोड़ लोगों को नागरिकता के योग्य माना गया है वहीं, 40 लाख लोगों को इसमें जगह नहीं मिल सकी है। इस रजिस्टर के जारी होने के बाद सियासी घमासान मचा हुआ है। पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 31 जुलाई तक के बाद इस समय सीमा को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा।
एनआरसी बनाने का काम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहा है, जिसके तहत असम में ग़ैर क़ानूनी प्रवासियों की पहचान की जा रही है। अदालत के अनुसार, केवल उन्हीं लोगों को एनआरसी में जगह दी जाएगी जो 24 मार्च 1971 की आधी रात तक असम आए और जिनके पास इस बात के सबूत भी होंगे।
दूसरी ओर, नागरिकता विधेयक के तहत अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, पारसी, सिख, जैन और ईसाई प्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान है। यह विधेयक इन देशों से 31 दिसंबर 2014 के पहले ग़ैर क़ानूनी तरीके से आए हिंदू, सिख, पारसी, ईसाई, जैन और बौद्ध समुदाय के लोगों के सिर से ग़ैरक़ानूनी प्रवासी का दाग हटा देगा और वे भारतीय नागरिकता हासिल करने लायक हो जएँगे।
नागरिकता विधेयक के कारण लोगों में डर बैठ गया है कि असम समझौते के तहत असम और स्थानीय लोगों को जो सुरक्षा मिली हुई थी, वह ख़त्म हो जाएगी और वे अपनी ही जमीन पर अल्पसंख्यक हो जाएँगे। एक दूसरा मुद्दा भी है। एक बार नागरिकता विधेयक क़ानून बन गया तो लोगों को संविधान के विपरीत पहली बार धर्म के आधार पर विदेशियों, ग़ैरक़ानूनी प्रवासियों और नागरिकों में बाँट दिया जाएगा।
यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि बांग्लादेश से आए लोगों की वजह से असम का जनसंख्या संतुलन गड़बड़ा गया है। पिछले चालीस सालों में असम और स्थानीय भाषा बोलने वालों की संख्या काफ़ी कम हो गई है।
नागरिकता विधेयक की वजह से असम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में बीजेपी के ख़िलाफ़ काफ़ी गुस्सा है। इस विधेयक के ख़िलाफ़ लोग लामबंद हैं और सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं। नागरिकता विधेयक पर असम गण परिषद ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया है। मेघालय में नैशनल पीपल्स पार्टी और त्रिपुरा में सरकार में शामिल इंडिजिनस पीपल्स फ़्रंट भी इस विधेयक के विरोध में हैं।
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