असम में हिमंत बिस्वा सरमा की कैबिनेट ने छह धार्मिक समुदायों - मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी को "अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र" जारी करने का फैसला किया है। लेकिन यह फैसला क्यों लिया गया या इसके पीछे कोई राजनीति है। यह बहुत स्पष्ट है कि असम में धार्मिक समुदायों का मुद्दा बहुत पेचीदा है। इसे एनआरसी के जरिए टारगेट करने की कोशिश की गई। लेकिन अब जिस तरह अल्पसंख्यक प्रमाणपत्र जारी करने की बात कही गई है वो भी कुल मिलाकर इन समुदायों के लोगों की पहचान करना है। इसके जरिए किनको टारगेट किया जाएगा, वो स्पष्ट है।
अल्पसंख्यकों को सर्टिफिकेट देने का मामला रविवार को तय नहीं हुआ है। रविवार को तो कैबिनेट ने इसका फैसला किया है। दरअसल, इसकी तैयारी मार्च-अप्रैल से ही की जा रही थी। इंडियन एक्सप्रेस की 6 अप्रैल की एक खबर बताती है कि अल्पसंख्यक सर्टिफिकेट देने के पीछे सीएम हिमंत बिस्वा सरमा का बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक का गणित है और यह सीधा पहचान से ही जुड़ा हुआ है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएम सरमा के हवाले से कहा गया था कि अल्पसंख्यकों की पहचान का मामला जिला स्तर पर तय हो और इसके लिए उन्हें सर्टिफिकेट दिया जाए, ताकि उनकी पहचान हो सके। सरमा ने उस समय विधानसभा में कहा था कि असम में आदिवासियों की जमीन को इसके जरिए संरक्षण मिलेगा। आदिवासी क्षेत्रों में ऐसी जमीनों पर अगर कोई आदिवासी कब्जा नहीं कर सकता तो रहमान, इस्लाम क्यों कब्जा करे। जब अल्पसंख्यक प्रमाणपत्र होगा तो पहचान आसान होगी। यानी मुख्यमंत्री शायद यह भी कहना चाहते हैं कि जिसके पास यह प्रमाणपत्र नहीं होगा, उसे विदेशी साबित करते कितनी देर लगेगी।
असम के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री केशव महंत ने गुवाहाटी में कैबिनेट की बैठक के बाद रविवार को प्रेस को बताया कि यह पहली बार है जब इस तरह के प्रमाण पत्र दिए जाएंगे। इसके निर्णय के तौर-तरीकों का अभी पता लगाया जा रहा है।
फैसले के पीछे का कारण बताते हुए महंत ने कहा कि इससे "पहचान" में मदद मिलेगी। हमारे पास अल्पसंख्यकों के लिए कई योजनाएं हैं, हमारे पास अल्पसंख्यकों के लिए एक अलग विभाग है… लेकिन अल्पसंख्यक कौन हैं? कोई पहचान नहीं है। हमें उनकी पहचान करने की जरूरत है ताकि ऐसी योजनाएं उन तक पहुंचें। महंत ने कहा, प्रमाण पत्र के लिए अनुरोध असम अल्पसंख्यक विकास बोर्ड से आया था।
अल्पसंख्यक विकास बोर्ड के अध्यक्ष हबीब मोहम्मद चौधरी ने कहा कि इस कदम से असम के अल्पसंख्यकों को "लाभ" होगा, खासकर सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में मदद मिलेगी। यह हमारी लंबे समय से मांग रही है। अक्सर, बिना प्रमाण पत्र के, हमें सरकारी योजनाओं और यहां तक कि छात्रवृत्ति या परीक्षा के मामले में मुद्दों का सामना करना पड़ता है। छात्र अपनी अल्पसंख्यक स्थिति साबित करने में असमर्थ हैं और योजनाओं का लाभ नहीं उठा सकते हैं। कई बार, उनके अनुरोध के बाद, हम बोर्ड से प्रमाण के रूप में आधिकारिक पत्र जारी करते हैं, लेकिन कई मामलों में, उन्हें स्वीकार नहीं किया जाता है।
उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने अभी तक उन्हें यह नहीं बताया है कि वे इन प्रमाणपत्रों को कैसे जारी करने जा रहे हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, हिंदुओं की संख्या असम की कुल आबादी का 61.47 प्रतिशत है, जबकि मुसलमानों की संख्या 34.22 प्रतिशत है। ईसाइयों की संख्या 3.74 प्रतिशत है, जबकि बौद्ध, सिख और जैन का प्रतिशत एक प्रतिशत से भी कम है।
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