बाढ़ का कहर
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) के अनुसार बाढ़ से 26 ज़िलों के 75 राजस्व सर्कल के 2,525 गांवों में 26,31,343 लोग प्रभावित हुए। इसके अलावा 1,15,515 हेक्टेयर कृषि भूमि जलमग्न हुई है।ये बाढ़- प्रभावित ज़िले हैं, धेमाजी, लखीमपुर, बिश्वनाथ, दरंग, बाक्सा, नलबाड़ी, बरपेटा, चिरांग, बोंगाईगांव, कोकराझार, धुबरी, दक्षिण सालमारा, गोवालपारा, कामरूप, कामरूप (मेट्रो), मोरीगाँव, नगाँव, होजाई, गोलाघाट, जोरहाट, माजुली, शिवसागर, डिब्रूगढ़, तिनसुकिया, पश्चिम कार्बी आंगलोंग और कछार।
बाढ़ ने लखीमपुर, बिश्वनाथ, नगाँव, जोरहाट, बोंगाईगांव, मोरीगांव, करीमगंज और पश्चिम कार्बी आंगलोंग में कई तटबंधों को क्षतिग्रस्त कर दिया है। लखीमपुर, चिराँग, नगाँव, जोरहाट और उदालगुरी ज़िलों में सड़कें टूट गई हैं।
काजीरंगा में तबाही
बाढ़ ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के 126 वन शिविरों को प्रभावित किया है, जबकि ओरंग नेशनल पार्क और पोबितोरा वन्यजीव अभयारण्य में भी कई वन शिविर बुरी तरह से प्रभावित हैं। काजीरंगा में बाढ़ से अब तक 120 वन्य जीव मारे जा चुके हैं।बाढ़ में कोरोना
‘कुछ जगहों पर मानदंडों को लागू करने में कुछ कठिनाई हो सकती है। लेकिन हम आवश्यकता पड़ने पर बल प्रयोग करके भी इसे लागू करने का प्रयास कर रहे हैं। इस बार हमने प्रति शिविर लोगों की संख्या कम करने के लिए राहत शिविरों की संख्या भी बढ़ाई है,’ चक्रवर्ती ने कहा।“
‘सौभाग्य से आज तक असम के किसी भी बाढ़ राहत शिविर में कोई भी कोरोना पॉज़िटिव मामला सामने नहीं आया है।’
पंकज चक्रवर्ती,राज्य परियोजना समन्वयक, एएसडीएमए
मनुष्य ज़िम्मेदार?
असम ऐतिहासिक रूप से बाढ़-ग्रस्त रहा है, लेकिन प्राकृतिक और मानव निर्मित कारकों ने आज़ादी के बाद स्थिति को और गंभीर बना दिया है।विशेषज्ञों का कहना है कि भूकंप ने क्षेत्र की स्थल आकृति को बदल दिया और ब्रह्मपुत्र घाटी को जल प्रलय के लिए अतिसंवेदनशील बना दिया।
असम में सूखा!
वर्षों से लगातार राज्य की विभिन्न पार्टियों की सरकारों ने नदियों पर सैकड़ों तटबंध बनाए हैं, लेकिन इनमें से कई संरचनाएं काफी कमजोर हो गई हैं। विडंबना यह है कि इतनी अधिक बाढ़ को देखने वाले राज्य असम ने हाल के वर्षों में सूखा भी देखा है। कुछ पर्यावरणविद् इन अप्रत्याशित पैटर्नों को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं।असमिया समाज राज्य में नदी जल की प्रचुरता का जश्न मनाता है। विभिन्न लोक गीत ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों के लिए समर्पित हैं। परंपरागत रूप से बाढ़ को पहले असम के समाज में एक ख़तरे के रूप में नहीं देखा गया था।
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