यह एक विडम्बना की ही बात है कि जिस समय मोदी सरकार ने बुलेट ट्रेन चलाने की तरह ब्रह्मपुत्र में सुरंग खोदकर चार लेन राजमार्ग बनाने की योजना तैयार की है, उस समय ब्रह्मपुत्र में आई भीषण बाढ़ की वजह से असम के लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। असम में हर साल बाढ़ नेताओं, नौकरशाहों और ठेकेदारों के लिए उत्सव की तरह आती है। बाढ़ नियंत्रण के नाम पर करोड़ों रुपयों की लूट होती है और आम जनता को तबाही का दंश झेलना पड़ता है। लाखों लोग इसी तरह साल दर साल विस्थापित होते रहे हैं और राहत की कतार में अपनी बारी का इंतज़ार करते रहे हैं।
कोरोना महामारी की दहशत के बीच असम भीषण बाढ़ से जूझ रहा है। बाढ़ ने राज्य में 80 से अधिक लोगों की जान ले ली है और 70 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। मानसून की भारी बौछार से बाढ़ के कारण राज्य के 33 ज़िलों में से कम से कम 24 ज़िले बुरी तरह प्रभावित हैं।
‘असम में बाढ़ के कारण 70 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। लोगों के साथ-साथ जानवरों को भी प्रभावित क्षेत्रों से बचाया जा रहा है और राहत शिविरों और सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जा रहा है।’ मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने मीडिया को बताया।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘एक तरफ़, कोविड-19 के कारण लोग परेशान हैं और दूसरी ओर असम में बाढ़ से उत्पन्न होने वाली चुनौतियाँ हैं। फिर भी हमारे राज्य के लोग साहस पूर्वक संकट का सामना कर रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकारें लोगों को हर तरह की सहायता प्रदान कर रही हैं।’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य में बाढ़, कटाव और कोविड-19 स्थिति का जायज़ा लेने के लिए रविवार को सोनोवाल से बात की। मुख्यमंत्री कार्यालय के एक बयान में कहा गया है, ‘पीएम ने कहा कि केंद्र सरकार इस कठिन समय के दौरान असम के लोगों के साथ है।’
केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के बुलेटिन के अनुसार राज्य की अधिकांश नदियाँ उफ़ान पर हैं। ब्रह्मपुत्र, धनसिरी, जिया भराली, कोपिली, बेकी, कुसियारा और सनकोश कई स्थानों पर ख़तरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। सीडब्ल्यूसी के ताज़ा अलर्ट में कहा गया है कि ब्रह्मपुत्र में और जल स्तर वृद्धि होने की उम्मीद है। नदी ने दो सप्ताह पहले अपने तटों को तोड़ दिया था, जिसमें 2,500 से अधिक गाँव बह गए थे। गोवालपारा सर्वाधिक प्रभावित ज़िला है, जहाँ 4.53 लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं, इसके बाद बरपेटा में 3.44 लाख और मोरीगाँव में 3.41 लाख लोग प्रभावित हुए हैं।
असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एएसडीएमए) ने कहा कि राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल के कार्मिक, ज़िला प्रशासन और स्थानीय लोगों ने पिछले 24 घंटों के दौरान 366 लोगों को बचाया है। बाढ़ से 50,000 से अधिक लोगों ने 521 राहत शिविरों में शरण ली है।
तेज़ी से बढ़ते जल स्तर ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान को भी जलमग्न कर दिया है, जो एक सींग वाले गैंडों के लिए दुनिया भर में विख्यात है। असम के कृषि मंत्री अतुल बोरा ने कहा, ‘नौ गैंडे डूब गए हैं और 100 से अधिक अन्य जानवर मारे गए हैं।’
मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि असम सरकार बाढ़ का पानी घटने के बाद बाढ़ और कटाव को रोकने के लिए केंद्र से विशेष पैकेज की माँग करेगी। मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि असम को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे कि कोविड-19 महामारी का प्रकोप, बाढ़, कटाव, भूस्खलन, तूफ़ान, स्वाइन फ़्लू, तेल कुएँ की आग इत्यादि। लेकिन साथ ही उन्होंने कहा, ‘मुझे पूरा विश्वास है कि सभी वर्गों के लोगों के सहयोग से हम चुनौतियों से पार पा लेंगे।’
मुख्यमंत्री ने क्या कहा?
सोनोवाल ने स्वीकार किया कि प्राकृतिक आपदाओं ने लोगों के लिए भारी कठिनाई पैदा की है और उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार, बाढ़ और भूस्खलन में सौ से अधिक लोग पहले ही अपनी जान गँवा चुके हैं, जबकि 70 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए हैं। बड़ी संख्या में लोग राहत शिविरों में शरण ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह प्रभावित लोगों को व्यक्तिगत रूप से राहत कार्यों की निगरानी कर रहे हैं और सभी अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वे प्रभावित लोगों को दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता सुनिश्चित करें। संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया है कि प्रभावित लोगों को चिकित्सा सहायता प्रदान की जाए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में जंगली जानवरों की रक्षा करना भी एक बड़ी चुनौती है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रभावित लोगों को राहत देने के लिए धन की कोई कमी नहीं है। लेकिन बाढ़ और कटाव से राज्य में संचार नेटवर्क बुरी तरह प्रभावित हुआ है क्योंकि राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों सहित सड़कों को नुक़सान पहुँचा है। पूरे राज्य में धान के खेत, घर आदि भी क्षतिग्रस्त हो गए हैं।
मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया कि राज्य सरकार के लिए यह संभव नहीं होगा कि वह अपने स्वयं के कोष से क्षतिपूर्ति करे और इसीलिए बाढ़ के पानी के स्तर में कमी आने के तुरंत बाद, सरकार नुक़सान का आकलन करने और विशेष सहायता लेने के लिए एक उचित सर्वेक्षण करेगी।
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