ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) ने 30 अन्य संगठनों के साथ राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के कार्यान्वयन के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू कर दिया है। पहले चरण में रविवार को भूख हड़ताल की जा चुकी है। एएएसयू सदस्यों ने कहा कि हमने आंदोलनों की लंबी रूपरेखा बनाई है। इससे पहले 7 मार्च को डिब्रूगढ़ और राज्य के कई अन्य जिलों में एक बाइक रैली निकाली गई। दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब कहा था कि सीएए लागू होकर रहेगा तो उसी दिन से असम में आंदोलन शुरू हो गया था।
असम और देश के अन्य भागों में दिसंबर 2019 और 2020 में विवादास्पद कानून के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन देखा गया था। सरकार ने इस कानून को लागू करने के साथ ही 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करने वाले मुस्लिम-बहुल बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की घोषणा की है। इस कानून का सबसे ज्यादा असर बांग्लादेश के सीमावर्ती राज्यों असम, पश्चिम बंगाल आदि पर सबसे ज्यादा पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि हम इस कानून की प्रतियां जलाएंगे और और विरोध प्रदर्शन तेज करेंगे। उन्होंने कहा कि “हम असम के सभी जिला मुख्यालयों में सीएए नियमों की प्रतियां जलाएंगे। उसके बाद, सत्याग्रह और अन्य अहिंसक लोकतांत्रिक आंदोलनों की लंबी श्रृंखला होगी।”
उन्होंने कहा कि “हमारा बुनियादी सवाल यह है कि अगर सीएए मिजोरम या अरुणाचल प्रदेश के लिए खराब है, तो यह असम के लिए कैसे अच्छा है? यदि यह असम के कोकराझार और कार्बी आंगलोंग के लिए गलत है, तो यह नागांव और कामरूप के लिए कैसे अच्छा है? हमें डंपिंग ग्राउंड नहीं बनाया जा सकता।''
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