जगन मोहन रेड्डी ने आंध्रप्रदेश में अपनी ‘प्रजा संकल्प पदयात्रा’ पूरी कर ली है। 341 दिन तक हुई इस पैदल यात्रा के दौरान जगन मोहन रेड्डी 3648 किलोमीटर चले। जगन ने 6 नवंबर, 2017 को अपने पिता वाई. एस. राजशेखर रेड्डी की समाधि से यह यात्रा शुरू की थी। कडपा ज़िले के पुलिवेन्दुला निर्वाचन क्षेत्र के इडुपुलपाया से शुरू हुई यह यात्रा 9 जनवरी, 2019 को श्रीकाकुलम जिले के इच्छापुरम में ख़त्म हुई। यात्रा आंध्र के सभी 13 ज़िले से होते हुए गुज़री। जगन ने इस यात्रा से राज्य के 175 विधानसभा क्षेत्रों में से 134 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया और इस दौरान लाखों लोगों से मुलाकात की। यात्रा के दौरान ही उन्होंने 124 जनसभाओं को भी संबोधित किया और कई कार्यकर्त्ता सम्मेलनों में हिस्सा लिया। आँकड़ों के लिहाज़ से जगन की यह यात्रा आन्ध्र में ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण भारत में अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक पदयात्रा है। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के नेताओं का दावा है कि उनके नेता की यह यात्रा दक्षिण में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में अब तक की सबसे बड़ी यात्रा है। यात्रा के दौरान उमड़ी भीड़ से पार्टी नेता फूले नहीं समा रहे हैं और तरह-तरह के दावे ठोक रहे हैं। दावा यह भी कि आंध्र में ‘अबकी बारी जगन की बारी’ है।
लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या राज्य भर में पैदल यात्रा करते-करते जगन मुख्यमंत्री की कुर्सी के क़रीब पहुँच गए हैं? इस सवाल का जवाब तो चुनाव परिणाम आने पर ही मिलेगा, लेकिन इतना ज़रूर है कि इस यात्रा ने चंद्रबाबू नायडू और उनकी तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के नेताओं की नींद ख़राब कर दी है। वैसे भी आंध्र की राजनीति में इन पदयात्राओं का महत्त्व बहुत ज़्यादा रहा है। जगन के पिता वाई.एस. राजशेखर रेड्डी भी पदयात्रा के ज़रिये ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचे थे। साल 2003 में राजशेखर रेड्डी ने पदयात्रा की और उस समय सबसे ताक़तवर नेताओं में से एक चंद्रबाबू को सत्ता से हटा दिया। दिलचस्प बात यह है कि इस बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चंद्रबाबू हैं और उन्हें कुर्सी से हटाने के मक़सद से वाईएसआर के बेटे जगन ने पदयात्रा की है। क्या जगन इतिहास को दोहराएँगे? इस सवाल का जवाब कुछ राजनीतिक विश्लेषक हाँ में देते हैं। इन विश्लेषकों का कहना है कि आंध्र में अब कुछ इस तरह का सेंटिमेंट बन गया है कि पदयात्रा किये बिना मुख्यमंत्री नहीं बना जा सकता है। जगन ने अब तक की सबसे बड़ी और लम्बी पद यात्रा कर डाली है।
वाईएसआर ने भी निकाली थी यात्रा
साल 2003 में विपक्ष के नेता वाईएसआर ने चंद्रबाबू नायडू की सरकार के ख़िलाफ़ ‘प्रजा प्रस्थानम’ नाम से पदयात्रा की थी। उस समय आंध्रपदेश का विभाजन नहीं हुआ था और वाईएसआर ने रंगारेड्डी जिले के चेवेल्ला से श्रीकाकुलम ज़िले के इच्छापुरम तक की पैदल यात्रा की थी। 90 दिन तक चली इस यात्रा के दौरान वाईएसआर 1475 किलोमीटर चले थे। इस दौरान वे भी लाखों लोगों से मिले थे। उस समय चंद्रबाबू मुख्यमंत्री तो थे ही उनका केंद्र की राजनीति में भी काफ़ी दबदबा था। साल 1995 से 2004 तक आंध्रप्रदेश की सत्ता पर चंद्रबाबू नायडू का शासन रहा। 1994 में अपने ससुर एन.टी.रामा राव के ख़िलाफ़ बगावत कर चंद्रबाबू मुख्यमंत्री बने थे। साल 1999 में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी से गठजोड़ किया था। 1999 के विधानसभा चुनाव में टीडीपी की शानदार जीत हुई थी और चंद्रबाबू दुबारा मुख्यमंत्री बने थे।
साल 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में भी चंद्रबाबू के नेतृत्व वाली टीडीपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था। उनकी छवि ‘हाईटेक मुख्यमंत्री’ की थी बावजूद इसके वाईएसआर की पदयात्रा का असर कुछ इस तरह का था कि 2004 के विधानसभा चुनाव में चंद्रबाबू की टीडीपी की करारी हार हुई थी।
2009 के विधानसभा चुनाव में भी वाईएसआर का जादू कायम रहा। चंद्रबाबू ने के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) की तेलंगाना राष्ट्र समिति और वामपंथी पार्टियों के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया था लेकिन यह वाईएसआर की लहर के सामने नहीं टिक पाया। तेलुगु फ़िल्मों के सुपरस्टार चिरंजीवी भी पार्टी बनाकर प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे थे लेकिन वे भी इस लहर में उड़ गए।
- लेकिन, 2009 में वाईएसआर की हेलिकॉप्टर-दुर्घटना में मौत के बाद आंध्रप्रदेश में हालात काफ़ी बदले। राजनीति की दशा-दिशा बदली। अलग तेलंगाना राज्य की माँग ने ज़ोर पकड़ा। तेलंगाना आंदोलन तेज़, उग्र और हिंसक हुआ। केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार को तेलंगाना के आंदोलनकारियों के सामने झुकना पड़ा। काफ़ी राजनीतिक उठा-पटक और हंगामे के बीच तेलंगाना राज्य का जन्म हुआ।
तब हुई थी जगन की पदयात्रा बाधित
इसी दौरान वाईएसआर के बेटे जगन मोहन रेड्डी और कांग्रेस आला कमान के बीच मतभेद उत्पन्न हुए। जगन ने बाग़ी तेवर अपनाए और कांग्रेस छोड़ दी। जगन ने अपनी ख़ुद की पार्टी बनाई और इसका नाम दिया वाईएसआर कांग्रेस। पार्टी बनाने के कुछ ही महीनों बाद उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और कोर्ट के आदेश पर सीबीआई की जाँच भी शुरू हुई। इन्हीं आरोपों के चलते उन्हें ज़ेल भी जाना पड़ा। ज़ेल जाने से पहले जगन ने ‘ओदार्पू यात्रा’ शुरू की थी। वाईएसआर की मौत की ख़बर सुनकर जान गँवाने वाले लोगों के परिजनों को सांत्वना देने के लिए यह यात्रा शुरू की गई थी। लेकिन गिरफ़्तारी के बाद जगन को यह यात्रा बीच में ही रोकनी पड़ी थी। जगन की बहन शर्मीला ने इस यात्रा को आगे बढ़ाया था। शर्मीला ने 2014 के चुनाव से पहले अपने भाई के लिए, अपने पिता वाईएसआर की तर्ज़ पर एक पदयात्रा शुरू की थी। ‘मरो प्रजा प्रस्थानम’ यानी दूसरी प्रजा प्रस्थानम यात्रा के नाम से शुरू इस यात्रा में शर्मीला ने 14 ज़िलों का दौरा किया था और 230 दिन तक अलग-अलग गाँवों और शहरों से होते हुए पैदल चली थीं।
उस समय विपक्ष के नेता चंद्रबाबू नायडू ने भी सत्ता में दुबारा लौटने के मक़सद से पदयात्रा की थी। 2013 में शुरू हुई इस पदयात्रा में चंद्रबाबू 2817 किलोमीटर चले थे। इसको पूरा करने में 7 महीने लगे थे। इस यात्रा के बाद चंद्रबाबू 10 साल बाद दुबारा सत्ता में लौटे थे।
इस बार पद यात्रा की बारी जगन मोहन रेड्डी की थी। चंद्रबाबू को सत्ता से हटाने के लिए जगन ने अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक यात्रा की। इस यात्रा के दौरान जगन को देखने, उनसे मिलने को उमड़ी भारी भीड़ को संकेत माना जाय तो आने वाले चुनाव में जगन के मुख्यमंत्री बनने की अच्छी संभावनाएँ नज़र आती हैं। ग़ौर देने वाली बात यह भी है कि जगन की यात्रा कई मायनों में दूसरी यात्राओं से भिन्न भी है। भ्रष्टाचार के मामलों में आरोपी जगन को हर हफ़्ते शुक्रवार के दिन हैदराबाद में सीबीआई की विशेष अदालत में हाज़िर होना पड़ता था। इसी वजह से वह यात्रा रोककर हर शुक्रवार हैदराबाद में कोर्ट में हाज़िरी देने आते थे।
- इसी यात्रा के दौरान जगन मोहन रेड्डी पर जानलेवा हमला भी हुआ। वह हैदराबाद आने के लिए विशाखापत्तनम एयरपोर्ट पर पहुँचे हुए थे तब श्रीनिवास नाम के एक व्यक्ति ने उनपर चाकू से हमला कर किया। चौकन्ने जगन बाल-बाल बच गए। वह इस हमले में ज़ख़्मी हुए थे। जगन की पार्टी का आरोप है कि इस हमले के पीछे चंद्रबाबू का ही हाथ है। कोर्ट के आदेश पर इस हमले की जाँच नेशनल इन्वेस्टिगेटिंग एजेंसी को सौंप दी गयी है।
बेचैन कौन?
बहरहाल, सभी की नज़र जगन को इस पदयात्रा से मिलने वाले फ़ायदे पर होगी। बीजेपी का साथ छोड़कर केंद्र की एनडीए सरकार से बाहर आने, तेलंगाना चुनाव में टीडीपी की करारी हार से चंद्रबाबू की परेशानियाँ और बढ़ गई हैं। सत्ता विरोधी लहर से भी नायडू परेशान हैं। और तो और, तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर और असदुद्दीन ओवैसी ने चंद्रबाबू को सत्ता से हटाने के लिए अगले चुनाव में जगन का साथ देने का एलान किया है। जानकारों का कहना है कि अगर कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो जगन का मुख्यमंत्री बनना तय है। वैसे भी पिछले कुछ सालों से आंध्रप्रदेश की राजनीति जगन के इर्द-गिर्द ही घूमी है। 2014 के चुनाव के समय ऐसा माना जा रहा था कि जगन ही मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन बीजेपी और टीडीपी का गठबंधन क्या हुआ उनका खेल बिगड़ गया। यही देखना दिलचस्प होगा कि क्या कोई जगन का खेल बिगाड़ पाएगा या फिर जगन ने पदयात्रा के ज़रिये मुख्यमंत्री की कुर्सी का रास्ता नाप लिया है।
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