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दुनिया के सबसे अमीर तिरुपति मंदिर में क्या वीआईपी दर्शन की व्यवस्था ख़त्म हो सकती है? यह सवाल दो कारणों से महत्वपूर्ण है। एक तो यह कि एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन से इस पर जवाब माँगा है। और दूसरा यह कि इस दर्शन व्यवस्था के कारण आम श्रद्धालुओं को घंटों लाइन में खड़े रहना पड़ता है जो काफ़ी पीड़ादायक है और इस व्यवस्था के ख़त्म होने से हर रोज़ आने वाले हज़ारों श्रद्धालुओं को काफ़ी ज़्यादा राहत मिलेगी। लेकिन क्या सच में ऐसा संभव है कि वीआईपी व्यवस्था को बंद कर दिया जाए? मंदिर प्रबंधन की जैसी प्रतिक्रियाएँ और इस पर रिपोर्टें छन-छन कर आ रही हैं उससे तो लगता है कि इसे ख़त्म नहीं किया जाएगा, बल्कि कुछ बदलाव ज़रूर कर दिया जाएगा। तो सवाल उठता है कि क्या होगी नयी व्यवस्था और इससे आम श्रद्धालुओं को कितनी राहत मिलेगी?
सामान्य दिनों में मंदिर में क़रीब 80,000 भक्त आते हैं और विशेष अवसरों पर संख्या दोगुनी हो जाती है। गर्मियों के दिनों में वार्षिक परीक्षा ख़त्म होने के बाद तो और भी ज़्यादा भीड़ होती है। यदि राहत मिलेगी तो काफ़ी ज़्यादा लोग लाभान्वित होंगे।
फ़िलहाल भक्त भगवान श्री वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए लंबी कतारों में घंटों खड़े रहते हैं। भगवान श्री वेंकटेश्वर के दर्शन की मौजूदा व्यवस्था में तीन वीआईपी श्रेणियाँ बनी हुई हैं। रिपोर्टें हैं कि इनको टीटीडी यानी तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम द्वारा हटा दिया जाएगा। टीटीडी ने भगवान के वीआईपी दर्शन के लिए एक वैकल्पिक योजना की घोषणा करने की योजना बनाई है। तिरुपति मंदिर में मौजूदा प्रणाली के अनुसार वीआईपी एक शुल्क का भुगतान करके और सिफ़ारिश पत्र देकर सामान्य श्रद्धालुओं की कतारों से बच सकते हैं और आराम से दर्शन कर सकते हैं। तिरुपति मंदिर की यही प्रणाली ‘वीआईपी ब्रेक दर्शन’ है।
बता दें कि मौजूदा वीआईपी पूजा पद्धति और इसकी तीन श्रेणियों पर टीटीडी से आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा सफ़ाई माँगे जाने के बाद टीटीडी ने मौजूदा प्रणाली में परिवर्तन करने की तैयारी की। अदालत ने वीआईपी प्रणाली की तीन श्रेणियों के संबंध में एक जनहित याचिका दायर करने के बाद जवाब माँगा था। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) गुरुवार को अदालत में स्पष्टीकरण के साथ अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
फ़िलहाल एल1 दर्शन में भक्तों को ‘आरती’ और ‘तीर्थम’ की अनुमति है, जबकि एल2 और सामान्य श्रेणियों के श्रद्धालुओं को मंदिर के अंदर इस तरह की पूजा की अनुमति नहीं है। इसके साथ ही एल1 के श्रद्धालुओं को कुछ मिनटों के लिए मूर्ति के सामने खड़े होने की अनुमति दी जाती है, जिसके बाद तीर्थम (पवित्र जल) परोसा जाता है। ये सुविधाएँ अन्य दो श्रेणियों के लिए नहीं हैं। आम श्रद्धालुओं को तो कतार में चलते रहना पड़ता है और रुकने का तो सवाल ही नहीं उठता।
टीटीडी ने इस मामले ने कहा कि ‘नए मेकनिज़्म से संबंधित घोषणा एक या दो दिन में की जाएगी।’ कार्यकारी अध्यक्ष अनिल कुमार सिंघल ने कहा कि हमें गुरुवार को अदालत को योजना से अवगत करना होगा और अगर अदालत इससे सहमत होती है तो हम नई योजना के बारे में लोगों को जानकारी देंगे। ‘टाइम ऑफ़ इंडिया’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, टीटीडी चेयरपर्सन वाई.वी. सुब्बा रेड्डी ने कहा, ‘अधिकारियों को एक उपयुक्त विकल्प तलाशने के लिए निर्देशित किया गया है।
मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि मंदिर प्रशासन ने वीआईपी दर्शन को केवल एक श्रेणी के तहत जारी रखने का फ़ैसला किया है। 'प्रोटोकॉल वीआईपी' के अलावा सभी को गर्भगृह के अंदर या तो वीआईपी ब्रेक दर्शन की शुरुआत में मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति होगी या वीआईपी ब्रेक दर्शन के अंत में। तीन अलग-अलग श्रेणियों की पुरानी प्रणाली के विपरीत नई प्रणाली में अन्य सभी वीआईपी श्रद्धालुओं को एक समान दर्शन की व्यवस्था दी जाएगी।
बहरहाल, इससे साफ़ है कि मौजूदा व्यवस्था में बदलाव तो होंगे। चूँकि हाई कोर्ट ने जवाब माँगा है तो ऐसी व्यवस्था मंदिर प्रशासन को करनी होगी जो श्रद्धालुओं के लिए राहत लेकर आए। ऐसे में कहा तो यही जा रहा है कि तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के नये फ़ैसले से सामान्य तीर्थयात्रियों को मंदिर में लंबी और घुमावदार कतारों से राहत मिल सकती है। यह राहत कितनी मिलेगी, यह कोर्ट में मंदिर प्रशासन द्वारा वैकल्पिक व्यवस्था पेश किए जाने के बाद साफ़ हो जाएगा।
श्री वेंकटेश्वर मंदिर तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है। इसी कारण यहाँ पर बालाजी को भगवान वेंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। यह भारत के उन चुनिंदा मंदिरों में से एक है, जिसके पट सभी धर्मानुयायियों के लिए खुले हुए हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है। वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
माना जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 9वीं शताब्दी से प्रारंभ होता है, जब काँचीपुरम के शासक वंश पल्लवों ने इस स्थान पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था। लेकिन 15वीं सदी के विजयनगर वंश के शासन के पश्चात भी इस मंदिर की ख्याति सीमित रही। इसके बाद मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक फैलनी शुरू हुई। 1843 से 1933 ई. तक अंग्रेज़ों के शासन के अंतर्गत इस मंदिर का प्रबंधन हातीरामजी मठ के महंत ने संभाला। 1933 में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' के हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया। आंध्र प्रदेश के राज्य बनने के बाद इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक अधिकारी को आंध्र प्रदेश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त किया गया।
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