महाराष्ट्र की महा विकास अघाडी सरकार की स्थिति अब जुलाई 2019 में कर्नाटक की जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार जैसी हो गई लगती है। तब कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस के 16 विधायक बीजेपी के संपर्क में थे और अब महाराष्ट्र में 11 विधायक बीजेपी शासित गुजरात के एक होटल में ठहरे हैं। ये सभी विधायक मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना से नाराज़ हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति मध्य प्रदेश में भी 2020 में तब बनी थी जब ख़बरें आ रही थीं कि क़रीब 22 विधायक बीजेपी नेतृत्व के संपर्क में थे। तो क्या अब महाराष्ट्र में भी कर्नाटक और मध्य प्रदेश की तरह राजनीतिक हालात बदलेंगे?
महाराष्ट्र में फ़िलहाल राजनीतिक समीकरण क्या हैं, यह समझने से पहले यह जान लें कि मध्य प्रदेश में 2020 में कांग्रेस और 2019 में कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस की सरकार के गिरने से पहले कैसी स्थिति थी।
जिस तरह के राजनीतिक हालात महाराष्ट्र में मौजूदा समय में हैं कुछ वैसे ही हालात कर्नाटक में जनवरी 2019 में थे। तब ऐसी रिपोर्टें आने लगी थीं कि बीजेपी नेतृत्व जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन के 16 विधायकों के संपर्क में है। और छह महीने के अंदर यानी जुलाई 2019 में 14 महीने पुरानी जेडीएस-कांग्रेस सरकार गिर गई थी। कर्नाटक विधानसभा में विश्वास मत के पक्ष में 99 वोट पड़े थे जबकि विपक्ष में 105 वोट पड़े। विश्वास मत के दौरान सदन में 204 विधायक मौजूद थे। इसके बाद कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सौंप दिया था।
कर्नाटक की सत्ता पर लंबे समय से बीजेपी की नज़र थी। विधानसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सीटें जीतने के बाद भी वह सरकार बनाने में नाकामयाब रही थी। सरकार बनाने के लिए उसने ‘ऑपरेशन लोटस’ भी चलाया था और कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की थी। लेकिन 14 महीने बाद ही उसे कुमारस्वामी सरकार को गिराने में सफलता मिल पाई थी।
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कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिरने के बाद से ही कयास लगाए जाने लगे थे कि मध्य प्रदेश की सरकार पर भी संकट गहरा सकता है। दरअसल, कुल 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 विधायक ही थे। अपने दम पर बहुमत के लिए 116 विधायकों की ज़रूरत थी। कांग्रेस को चार निर्दलीय, बीएसपी के दो और एसपी के एक विधायक का समर्थन हासिल था। इस तरह कुल 121 विधायक उसके पास थे और वह दूसरों के समर्थन पर ही टिकी थी। दूसरी तरफ़ बीजेपी के पास 108 विधायक थे।
2020 की शुरुआत में ही ख़बरें आई थीं कि मध्य प्रदेश में कम से कम 19 विधायक बीजेपी के संपर्क में हैं।
इसी बीच पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और 22 विधायकों के विधानसभा से इस्तीफ़ा देने के बाद कमलनाथ सरकार मुश्किल में आ गई थी। 22 विधायकों के इस्तीफ़े के बाद कांग्रेस के पास 92 विधायक रह गए थे।
इसके बाद 20 मार्च 2020 को कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा सौंप दिया था। कमलनाथ ने कहा था कि बीजेपी ने 22 विधायकों को बंधक बनाया और पूरा देश यह जानता है। उन्होंने आरोप लगाया था कि करोड़ों रुपये खर्च कर खेल खेला गया।
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2020 में ही एक समय राजस्थान में भी ऐसा ही सियासी तूफान उठा था जब सचिन पायलट ने बगावत कर दी थी। वह और उनके समर्थक कांग्रेस नेतृत्व की पहुँच से बाहर हो गए थे और एक समय तो लगने लगा था कि राजस्थान में भी कांग्रेस की सरकार गंभीर संकट में है। तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तनातनी चल रही थी। तब कांग्रेस का पूरा नेतृत्व इस संकट को दूर करने में लगा और आख़िर में दोनों गुटों में सुलह हुई। लेकिन इसके बाद भी तनातनी की ख़बरें आती रहीं।
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