ऐतिहासिक बन चुके 5 जुलाई 2023 के दिन अजित दादा पवार या ‘दादा’ अजित पवार को मुंबई के बांद्रा स्थित मुंबई एजुकेशनट्रस्ट परिसर में बोलते हुए टीवी पर सुना या देखा था क्या? ‘दादा’ जब अपने ‘काका’ शरद पवार को चैलेंज कर रहे थे तब देखकर कैसा महसूस हो रहा था? ‘दादा’ अपनी बात मराठी में ‘सांग’ रहे थे यानी बोल रहे थे। मराठी समझ नहीं आती हो तो भी जो चल रहा था सब साफ़ था।
अब अजित दादा के उस दिन के चेहरे को याद कीजिये जब शरद पवार अत्यंत नाटकीय अन्दाज़ में पार्टी-अध्यक्ष पद से पूर्व में दिये अपने इस्तीफ़े को वापस लेने के बाद बेटी सुप्रिया सुले और ‘तब’ अत्यंत ‘विश्वस्त’ प्रफुल पटेल को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी की सारी ज़िम्मेदारी सौंप रहे थे! अजित पवार को कुछ नहीं मिला था। अजित पवार की बांद्रा बैठक की तैयारी उसी क्षण से प्रारंभ हो गई थी।
(कतिपय विश्लेषक अपनी इस बात पर क़ायम हैं कि पाँच जुलाई का सारा ‘ड्रामा’ शरद पवार के दिमाग़ की ही उपज थी। अगर यह सही है तो दाद दी जा सकती है कि तिरासी साल की उम्र में भी एक ‘काका’ इस तरह का नाटक कर सकता है जबकि किसी समय इतनी ही उम्र के एक दूसरे ‘काका’ को उसकी पार्टी ने घर बैठा दिया था और वह चुपचाप बैठ भी गए थे! वे आज भी बताई गई मुद्रा में ही बैठे हुए हैं!)
यह समझने से पहले कि ‘दादा’ अपने सगे काका को किस भाषा में क्या उपदेश दे रहे थे इस सवाल पर आते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे मंझे हुए गुजराती नेता अजित दादा जैसे तेज-तर्रार और अति महत्वाकांक्षी मराठी मानुस को महाराष्ट्र की राजनीति में किस सीमा तक आगे बढ़ने देना चाहेंगे? ऊपरी तौर पर तो दोनों के बीच घनिष्ठ संबंध शीघ्रतिशीघ्र बन जाने चाहिए क्योंकि आगे बढ़ने के लिए जो राजनीति अजित दादा अपनी ही पार्टी के स्थापित शिखरों के साथ कर रहे हैं और जिन सीढ़ियों पर पैर रखकर मोदी गांधीनगर से नई दिल्ली पहुँचे हैं, दोनों के बीच समानताओं के कई बिंदु तलाश किए जा सकते हैं।
‘दादा’ ने फिर पूछा : आप 83 के हो गये हो! आप क्या अब भी रुकने वाले नहीं हो? शरद पवार ने इसका दिल्ली पहुँचकर जवाब दिया कि वे अब भी प्रभावी हैं, चाहे 82 के हों या 92 के।
अजित पवार अभी तिरसठ साल के हैं। उनके पास रिटायर होने के लिए काफ़ी वक्त है। उनसे यह सुनने के लिये तीन साल प्रतीक्षा करनी पड़ेगी कि पचहत्तर की उम्र में रिटायरमेंट का जो उपदेश बांद्रा के कुरुक्षेत्र में काका को दिया था मोदी को भी कहते हुए देने वाले हैं कि अब उन्हें घर बैठकर नए लोगों को आगे बढ़ने का मौक़ा देना चाहिए! इसके लिए अजित पवार को तीन साल तक भाजपा के साथ बने रहना पड़ेगा जिसकी संभावना कम नज़र आती है!
अजित पवार अगर अपने काका से कह सकते हैं कि वे अब मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं तो वे आगे चलकर किसी और बड़े पद की माँग मोदी से भी कर सकते हैं! यह भी कि अगर अजित पवार ने तय कर ही लिया है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनने से कोई रोक नहीं सकता तो फिर एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फड़णवीस क्या करने वाले हैं? अजित पवार की कार्यशैली से भाजपा के धुरंधरों को इसलिए डरना चाहिए कि उन्होंने 2019 के विद्रोह में हुई चूक की तरह की कोई ग़लती इस ऑपरेशन में नहीं की। बांद्रा सम्मेलन के दो दिन पहले ही पार्टी की गुप्त बैठक बुलाकर अपने आप को एनसीपी का प्रमुख भी चुनवा लिया और किसी को भी खबर तक नहीं होने दी। राजनीति के हर सफल तख्ता-पलट की पीठ के पीछे की कहानी ऐसी ही मिलेगी!
पूरे ‘पवार परिवार’ प्रसंग में जिस एक व्यक्ति की भूमिका पर चर्चा करना ज़रूरी है वह प्रफुल पटेल हैं। मेरे जैसे कई लोग होंगे जो यूपीए सरकार के दस साल के कार्यकाल पर तब पूरी नज़र रखते थे और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में पटेल के कामकाज और उनके मंत्रालय को लेकर उठने वाले विवादों से परिचित रहे हैं। उस सबकी चर्चा फिर किसी समय। अभी बात सिर्फ़ बांद्रा की। अजित दादा के साथ-साथ शानदार मराठी में भाषण करते हुए पटेल के वीडियो के उस अंश को जब उनके राजनीतिक ‘मेंटर’ शरद पवार ने देखा होगा जिसमें वे पटना में हुई विपक्ष की बैठक का ज़िक्र कर रहे थे तब उनके दिल पर क्या गुजरी होगी कल्पना करना मुश्किल है। शरद पवार पटना की बैठक में अपने सबसे नज़दीकी सहयोगी के रूप में पटेल को साथ ले गये थे।
अजित पवार के साथ मंच की भागीदारी करते हुए पटेल ने वर्णन किया कि पटना-बैठक का नज़ारा देखकर उनका मन हँसने का कर रहा था। उन्होंने वहाँ देखा कि बैठक में उपस्थित सत्रह पार्टियों में सात का लोकसभा में सिर्फ़ एक-एक ही सांसद है। एक पार्टी के पास तो एक भी सांसद नहीं है। ये (विपक्षी) दावा करते हैं कि सबकुछ बदल डालेंगे! पटेल ने पवार से पूछा कि जब एनसीपी महाराष्ट्र विकास अघाडी (एमवीए) में शामिल होकर शिव सेना की विचारधारा को स्वीकार कर सकती है तो उसके (अजित पवार गुट के) भाजपा के साथ जाने पर आपत्ति क्यों होनी चाहिए?
महाराष्ट्र के घटनाक्रम से भारतीय जनता पार्टी को राज्य में अखंड सौभाग्यवती रहने का वरदान प्राप्त हो गया है या जो कुछ चल रहा है वह अरब सागर से मुंबई के तटों पर उठने वाली किसी राजनीतिक सूनामी के संकेत हैं जानने के लिये शायद ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़े! सत्ता प्राप्ति के लिये जिस राजनीति की शुरुआत भाजपा के नेतृत्व में हुई है उसका पटाक्षेप भी प्रधानमंत्री की आँखों के सामने ही होना चाहिए। आकलन सही भी साबित हो सकता है कि सूनामी के बाद सबसे ज़्यादा बचाव कार्यों की ज़रूरत भाजपा-शिविरों को ही पड़ेगी।
शरद पवार एक अनुभवी नेता हैं। उन्होंने भतीजे को आगाह किया था कि मोदी द्वारा एनसीपी को एक भ्रष्ट पार्टी बताए जाने के बावजूद वे ग़ैर-भरोसे वाली बीजेपी के साथ जा रहे हैं पर अजित पवार माने नहीं। महाराष्ट्र की जनता पहचानती है कि एनसीपी का चुनाव चिन्ह ‘घड़ी’ है। ‘घड़ी’ नाम का एक चर्चित डिटर्जेंट पाउडर भी है। भाजपा एक बड़ी विशाल पेट वाली वाशिंग मशीन है जिसमें ठीक से धो दिए जाने के बाद सारे मैल दूर हो जाते हैं। महाराष्ट्र ऑपरेशन के बाद भाजपा बिहार सहित अन्य राज्यों से राजनेताओं से उनके मैले कपड़े उतरवाने में जुट गई है। देखना यही बाक़ी रहेगा कि 2024 के चुनावों के बाद कितने कपड़े उजले होकर वाशिंग मशीन से बाहर निकलते हैं और कितने चिथड़े होकर!
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