लगभग 5 साल पहले नरेंद्र मोदी जिस नए चेहरे और उत्साह के साथ भारतीय जनमानस में दाख़िल हुए थे, वह अब फीका पड़ने लगा है। 'कांग्रेस-मुक्त भारत' की बात करते हुए नरेन्द्र मोदी ने 5 सालों में कांग्रेस को जीवनदान दे दिया है। साल भर पहले भारत से लगभग साफ़ हो चुकी कांग्रेस अब वैसे ही सत्ता को ललकारती नजर आ रही है, जैसे कभी इमर्जेंसी के दौरान जॉर्ज फ़र्नांडीस की बेड़ियों में जकड़ी हुई तसवीर से इंदिरा गाँधी की सत्ता हिल गई थी।
आज मोदी सरकार पर सीबीआई, आरबीआई, सुप्रीम कोर्ट समेत तमाम संवैधानिक संस्थाओं पर हमले करने के आरोप लग रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी पर अपने हमले को पैना करते हुए कांग्रेस उन्हें 'तानाशाह और अलोकतांत्रिक' नेता साबित करने में जुटी हुई है।
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नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आते ही योजना आयोग को भंग करने के साथ ही 'नेहरू युग' को 'मोदी युग' से बदलने की कोशिश की। पर आज हक़ीक़त यह है कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी पर लगातार दोष मढ़ते हुए मोदी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी का प्रतिरूप नज़र आने लगे हैं। दूसरी ओर मंदिरों में जाकर गोत्र बताते और संसद में मोदी को गले लगाते एवं आँख मारते राहुल गाँधी ‘सनातन कुँवारे’ और ‘उदारवादी दक्षिणपंथी’ अटलबिहारी वाजपेयी की जगह ले रहे हैं।
लोकप्रिय राजीव और मोदी
राजीव 1944 में पैदा हुए और नरेंद्र मोदी 1949 में। दिल्ली की राजनीति में दोनों ही बाहरी थे। दोनों ने ही व्यक्तित्व की राजनीति की। दोनों ही जनता में बेहद पॉपुलर रहे। दोनों 'मिस्टर क्लीन' की इमेज के साथ राजनीति में आए। राजीव ने कश्मीरी शॉल को पॉपुलर बनाया तो मोदी ने हाफ़ कुर्ते और जैकेट को। राजीव को प्लेन उड़ाने का शौक था तो मोदी को प्लेन में उड़ने का शौक है।
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जनता को थी बहुत उम्मीदें
1985 में कांग्रेस को बहुमत दिलाकर राजीव सत्ता में आए। ठीक उसी प्रकार 2014 में बीजेपी को बहुमत दिला, नरेंद्र मोदी सत्ता में आए। दोनों से ही जनता को बहुत उम्मीदें थीं। इतनी उम्मीदें कि दोनों के ही सत्ता में आने से पहले भारत में हुए अल्पसंख्यकों के दो भीषण नरसंहारों को भी जनता ने अनदेखा कर दिया। दोनों पर ही आरोप लगे कि अगर वे चाहते तो नरसंहार रुक सकते थे। दोनों ही नेताओं की प्रतिक्रियाएँ नरंसहारों को लेकर एक जैसी थीं।
1984 के सिख नरसंहार के वक़्त जहाँ राजीव गाँधी ने 'बड़ा वृक्ष गिरने पर धरती हिलने' की बात की, वहीं 2002 के मुसलिम नरसंहार के संदर्भ में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 'हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है।'
अफ़सरों पर ज़्यादा भरोसा
राजीव गाँधी ने मिज़ो समझौते को लाल क़िले से घोषित किया तो नरेंद्र मोदी ने उसी नाटकीय अंदाज में नगा समझौते का एलान किया। राजीव गाँधी भी नरेंद्र मोदी की ही तरह बड़े फ़ैसले लेते वक़्त ज़्यादा लोगों से सलाह नहीं करते थे। दोनों ही नेताओं को अपने चुने हुए अफ़सरों पर ज़्यादा भरोसा था, जो बाक़ी नेताओं को 'बाईपास' करके सीधा प्रधानमंत्री से 'कनेक्ट' करते थे।
राजीव और मोदी में समानताएँ यहीं नहीं रुकतीं। देश की टैक्स प्रणाली को सरल बनाने की कोशिश दोनों नेताओं ने की। दक्षिण एशिया की राजनीति को अपने व्यक्तित्व के दम पर सुधारने की कोशिश भी दोनों ने की और दोनों ने ही मुँह की खाई। जहाँ, राजीव ने 1987 में श्रीलंका में भारतीय शांति सेना उतार कर ग़लती की। वहीं, नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में नेपाल, मालदीव, श्रीलंका समेत बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी संबंध ख़राब होने लगे हैं। दोनों ही नेताओं ने रूस, अमेरिका, यूएई, सऊदी अरब सबसे रिश्ते सुधारने की कोशिश की।
मोदी और राजीव ने अपने विदेशी दौरों को ख़ूब प्रचारित कराया। मीडिया का भी इस्तेमाल किया। दोनों ने जमकर विदेश यात्राएँ कीं, लेकिन इन यात्राओं का ज़्यादातर नतीजा सिफ़र ही रहा।
चुनावी लाभ के लिए फ़ैसले
जब राजीव ने 1986 में अयोध्या में राम जन्मभूमि का ताला खुलवाया तो इसके लिए उन पर कोई दबाव नहीं था। उन्होंने यह सिर्फ़ चुनावी लाभ पाने की रणनीति के तहत किया था। शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को पलटते हुए संविधान संशोधन भी राजीव ने मुसलिम वोटों को अपने साथ बनाए रखने के लिए ही किया था। इससे हिंदुओं में उपजे ग़ुस्से को शांत करने के लिए उन्होंने राम जन्मभूमि का ताला खुलवाया।
राजीव बोफ़ोर्स सौदे में फँसे और नरेंद्र मोदी रफ़ाल डील में घिर गए हैं। जैसे वी. पी. सिंह राजीव के ऊपर आरोप लगाते थे, वैसे ही राहुल गाँधी सीधा प्रधानमंत्री मोदी को 'चोर' कह रहे हैं।
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