यूपी की राजधानी लखनऊ के हज़रतगंज स्थित गोखले मार्ग पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की मामी और केंद्रीय मंत्री रहीं दिवंगत शीला कौल का घर है। इस घर में आज़ादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गाँधी और जवाहरलाल नेहरू के लगाये पौधे अब घने छायादार पेड़ बन चुके हैं। 3 अक्टूबर 2021 की रात इस घर को जोड़ने वाली हर सड़क पर पुलिस का पहरा था। योगी आदित्यनाथ सरकार हर मुमकिन कोशिश में जुटी थीं कि इस घर में मौजूद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी बाहर न निकल सकें। प्रियंका गाँधी ने लखीमपुर खीरी जाने का ऐलान किया था जहाँ चार किसानों समेत आठ लोगों को केंद्रीय राज्यमंत्री अजय सिंह टेनी के बेटे की गाड़ी ने कुचल कर मार दिया था। इसे लेकर देशभर के किसानों में काफ़ी गु़स्सा था।
लेकिन योगी सरकार की सारी सतर्कता धरी रह गयी। प्रियंका गाँधी सारे सुरक्षा घेरे को धता बताते हुए पैदल ही घर से निकल गयीं। प्रशासन को उनके निकल जाने का पता तब चला जब वे लखनऊ से निकलकर सीतापुर की ओर बढ़ रही थीं। रात के अंधेरे में मुख्यमार्ग छोड़कर तेज़ी से लखीमपुर की ओर बढ़ रहीं प्रियंका गाँधी को आख़िरकार पुलिस ने हरगाँव में गिरफ़्तार किया और सीतापुर की पुलिस लाइन्स में अस्थायी जेल बनाकर उन्हें क़रीब तीस घंटे तक क़ैद रखा। इस दौरान अपने कमरे में झाड़ू लगाती प्रियंका गाँधी की तस्वीर सोशल मीडिया में काफ़ी वायरल हुई थी। बाद में वे राहुल गाँधी के साथ शहीद किसानों को श्रद्धांजलि देने लखीमपुर खीरी भी पहुँचीं।प्रियंका गाँधी के साहस और सत्ता से सीधे भिड़ने के हौसले की तब चौतरफ़ा प्रशंसा हुई थी।
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लेकिन तीन साल बाद संसद की ओर बढ़ रहीं प्रियंका गांधी को रोकने की कोई हिम्मत भी नहीं कर सका। केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद चुने गये राहुल गाँधी के इस्तीफ़े से ख़ाली उनकी सीट पर प्रियंका गाँधी ने उपचुनाव लड़ा और रिकॉर्ड बहुमत से चुनाव जीता। उन्होंने राहुल गाँधी की जीत का मार्जिन भी पीछे छोड़ दिया जिन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव में सीपीआई की प्रत्याशी एनी राजा को 3,64,422 वोटों से हराया था। वायनाड में नारा गूँज रहा है कि प्रियंका के रूप में इंदिरा गाँधी वापस आ गयी हैं। प्रियंका गाँधी ने निकटतम प्रतिद्वंद्वी सीपीआई के सत्यन मोकेरी को चार लाख से ज़्यादा वोटों से हराकर जीत हासिल की। बीजेपी प्रत्याशी तीसरे नंबर पर चला गया। प्रियंका को कुल पड़े साढ़े लौ लाख वोटों में क़रीब 65 फ़ीसदी वोट अकेले हासिल हुए।
प्रियंका गाँधी की जीत पीएम मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के सपने पर कुठाराघात है जिसके पीछे असल इरादा राजनीति से गाँधी परिवार को बाहर करना है।
मोदी के नेतृत्व में राहुल गाँधी समेत पूरे गाँधी परिवार के ख़िलाफ़ जिस तरह का दुष्प्रचार का अभियान चल रहा है, उसकी कोई दूसरी मिसाल मिलना मुश्किल है। अब लोकसभा सदस्य के रूप में पीएम मोदी का सामान राहुल गाँधी के साथ-साथ प्रियंका गाँधी से भी होगा जो भाषा पर अपनी शानदार पकड़ और तुर्की-ब-तुर्की जवाब देने की शैली के लिए मशहूर हैं। प्रियंका की जीत आरएसएस और बीजेपी के सांप्रदायिक और फ़ासीवादी विचारधारा के ख़िलाफ़ जारी राहुल गाँधी के वैचारिक संघर्ष को नयी धार देगी, इसमें शक़ नहीं।
12 जनवरी 1972 को राजीव गाँधी और सोनिया गाँधी की दूसरी संतान के रूप में जन्मीं प्रियंका गाँधी की राजनीति का सफ़र हमेशा पर्दे के पीछे रहा।
देश की प्रधानमंत्री और अपनी दादी इंदिरा गाँधी की हत्या के समय वे महज़ 12 साल की थीं और इस घटना ने उनके जीवन पर निश्चित ही गहरा प्रभाव डाला। पिता राजीव गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में एक किशोर के रूप में उन्होंने कभी-कभी अमेठी यात्रा ज़रूर की लेकिन राजनीति को लेकर उन्होंने कोई रुचि नहीं दिखायी। पिता की शहादत के बाद परिवार पर गहराये सुरक्षा संकट को भी क़रीब से अनुभव किया। परिवार लंबे समय तक राजनीति से बाहर हो गया। सुरक्षा कारणों से नियमित कॉालेज जाना संभव नहीं था पर प्रियंका गाँधी ने मनोविज्ञान में ग्रेजुएशन और फिर बौद्ध दर्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की।
कांग्रेस पार्टी की एकता के लिए गाँधी परिवार की सक्रियता को ज़रूरी मानने वाले काग्रेस नेताओं के दबाव में 1997 में सोनिया गाँधी कांग्रेस में सक्रिय हुईं और 1998 में उन्होंने पार्टी की कमान सँभाली।
इस बीच प्रियंका गाँधी साये की तरह उनके साथ रहीं। दुनिया का ध्यान पहली बार प्रियंका गाँधी की तरफ़ तब गया जब 1999 में रायबरेली से चुनाव लड़ रहे अपने रिश्ते के चाचा अरुण नेहरू के ख़िलाफ़ उन्होंने हुंकार भरी। कांग्रेस प्रत्याशी कैप्टन सतीश शर्मा के लिए प्रचार करने पहुँचीं प्रियंका गाँधी ने राजीव गाँधी के साथ अरुण नेहरू के विश्वासघात की याद दिलाते हुए एक जनसभा में पूछा-"मेरे पिता जी से दग़ाबाज़ी करने वालों को आपने यहां पर घुसने कैसे दिया? क्या आप उन्हें वोट देंगे जिन्होंने मेरे पिता की पीठ पर छुरा भोंका था?”
प्रियंका गाँधी के इस एक बयान ने चुनाव की फ़िज़ा बदल दी। जीत के प्रति आश्वस्त अरुण नेहरू चौथे नंबर पर चले गये और कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव जीत गये।
- प्रियंका 1999 में सोनिया गाँधी का पूरा चुनाव सँभाला रही थीं जो अमेठी से पहली बार चुनाव लड़ रही थीं। लेकिन बीबीसी को दिये एक इंटरव्यू में प्रियंका गाँधी ने स्पष्ट कर दिया था कि उनकी ख़ुद सीधे राजनीति में उतरने या चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उन्होंने तब बीबीसी संवाददाता से कहा था कि “जनता की सेवा करने के लिए चुनाव लड़ना ज़रूरी नहीं है। मैं उनकी सेवा राजनीति से बाहर रहकर भी कर सकती हूँ।”
अगले पच्चीस सालों तक प्रियंका गाँधी अपने इसी संकल्प पर अड़ी रहीं। 2004 में सोनिया गाँधी ने रायबरेली सीट से चुनाव लड़ना शुरू किया और अमेठी सीट पर राहुल गाँधी चुनाव लड़ने आ गये। प्रियंका गाँधी इन्हीं दो लोकसभा सीटों पर सीमित रहीं और माँ तथा भाई का चुनाव प्रबंधन सँभालती रहीं।
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले जब सोनिया गाँधी राज्यसभा में चली गयीं तो चर्चा थी कि अमेठी से प्रियंका गाँधी चुनाव लड़ेंगी लेकिन पार्टी ने वहाँ से किशोरी लाल शर्मा को चुनाव में उतारा जिन्होंने क़द्दावर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को चुनाव हरा कर सबको हैरान कर दिया। उनकी इस जीत के पीछे प्रियंका गाँधी की मेहनत साफ़ नज़र आ रही थी जो रायबरेली में भाई राहुल गाँधी के चुनाव प्रबंधन सँभालने के साथ-साथ अमेठी में भी पूरी नज़र बनाये हुए थीं। 2024 के लोकसभा चुनाव में राहुल गाँधी ने रायबरेली में काफ़ी कम समय दिया। उन्हें प्रियंका गाँधी पर पूरा भरोसा था और वे लगभग चार लाख वोटों से चुनाव जीत गये। उन्होंने वायनाड से भी शानदार जीत हासिल की थी लेकिन रायबरेली से सांसद बने रहना तय किया। यह वायनाड की जनता का गाँधी परिवार के प्रति प्यार और सम्मान ही था जिसके दबाव में प्रियंका गाँधी चुनावी राजनीति में उतरने को मजबूर हुईं।
प्रियंका गाँधी एक संवेदनशील और साहसी महिला बतौर भारत के राजनीतिक आकाश में एक धूमकेतु की तरह उभरी हैं। उनकी संवेदनशीलता ने लोगों का दिल तब छुआ था जब वे 2008 में अपने पिता की हत्यारी नलिनि श्रीहरण से मिलने वेल्लोर जेल गयी थीं। राहुल गाँधी ने बीते दिनों एक सार्वजनिक सभा में घृणा का जवाब प्रेम से देने के एक उदाहरण बतौर इस घटना का ज़िक्र करते हुए बताया था कि तब प्रियंका ने कहा था कि ‘उन्हें नलिनि के लिए बहुत बुरा लग रहा है।’
प्रियंका के साहसी अंदाज़ को लोगों ने बहुत शिद्दत से महसूस किया जब वे सितंबर 2020 में प्रभारी महासचिव के रूप में उत्तर प्रदेश की कमान सँभालने पहुँची थीं। प्रियंका के आह्वान पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने योगी सरकार के ख़िलाफ़ प्रदेश भर की सड़कें गरमा दी थीं। प्रियंका ने रात-दिन मेहनत की थी। कभी नाव से तो कभी सड़क मार्ग से हर पीड़ित का आँसू पोंछने पहुँच जाती थीं। उन्होंने तभी ‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ’ जैसा नारा दिया जो देश भर में महिला सशक्तीकरण की नयी पहचान बन गया। अरसे बाद कांग्रेस का संगठन प्रदेश से लेकर ब्लॉक तक सक्रिय नज़र आया। प्रियंका गाँधी की रैलियों में लाखों की भीड़ उमड़ रही थी। प्रदेश में बीजेपी विरोधी माहौल बना। यह अलग बात है कि आमने-सामने की लड़ाई मानते हुए बीजेपी को हराने की इच्छा रखने वालों ने पूरा दाँव समाजवादी पार्टी पर लगा दिया और 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल दो सीट मिल सकीं।
लेकिन प्रियंका गाँधी की मेहनत का फ़ायदा 2024 के लोकसभा चुनाव में नज़र आया। समाजवादी पार्टी को कांग्रेस की अहमियत समझ में आ गयी। अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और पीएम मोदी का विजय रथ यूपी की रणभूमि में चकनाचूर हो गया। कांग्रेस को छह लोकसभा सीटें हासिल हुईं। इंडिया गठबंधन ने यूपी में 43 सीटें हासिल करके केंद्र में तीसरी बार बहुमत पाने का मोदी का सपना चकनाचूर कर दिया।
भारतीय जनता पार्टी प्रियंका गाँधी में छिपी ‘संभावना’ के ख़तरे से अच्छी तरह वाक़िफ़ है। इसीलिए अरसे से उनके पति राबर्ट वाड्रा पर तरह-तरह के आरोप लगाकर घेरने की कोशिश की जाती रही है। उम्मीद थी कि इससे घबराकर तमाम दूसरे नेताओं की तरह प्रियंका गाँधी भी अपने तेवर ढीले कर देंगी। लेकिन हुआ उल्टा। राबर्ट वाड्रा को नोटिस पर नोटिस जारी होते रहे पर इसके साथ-साथ प्रियंका गाँधी के तेवर भी तीखे होते गये। इन आरोपों में कितना दम है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्र और हरियाणा में लगातार दस साल से ज़्यादा समय से शासन कर रही बीजेपी किसी भी मामले में राबर्ट वाड्रा के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर सकी।
कुछ समय पहले पीएम मोदी ने मज़ाक़ उड़ाने के अंदाज़ में कहा था कि 'कांग्रेस बूढ़ी हो गयी है।’ प्रियंका गाँधी ने एक चुनावी रैली में इसका जवाब देते हुए जनता से पूछा था कि ‘क्या मैं बूढ़ी दिखती हूँ?’ उनका यह अंदाज़ बताता है कि वे आरएसएस और बीजेपी की कांग्रेसमुक्त भारत की योजना की राह में एक नौजवान बाधा की तरह हैं।
वे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान विकसित मूल्यों और संविधान के संकल्पों से बँधी कांग्रेस का प्रतिरूप हैं। ख़ास बात ये भी है कि ‘भाई को चुनौती’ की तरह पेश करने वाले तमाम स्तंभकारों के सोच से उलट वे बड़े भाई राहुल के कंधे से कंधा मिला कर चलने वाली मज़बूत शक्ति हैं। सिर्फ़ भौतिक रूप में नहीं, वैचारिक रूप से भी वे राहुल गाँधी के साथ पूरी मज़बूती से खड़ी हैं जो देश की राजनीति में आर्थिक और सामाजिक न्याय का नया अध्याय लिखने में जुटे हैं। राहुल गाँधी के विचार को आगे बढ़ाते हुए प्रियंका गाँधी ने हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी को चुनौती देते हुए कहा था कि वे एक बार मंच से ‘जाति जनगणना कराने और आरक्षण की पचास फ़ीसदी सीमा हटाने का ऐलान करके दिखाएँ!'
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प्रियंका गाँधी का लोकसभा में प्रवेश देश की सबसे पुरानी और समावेशी पार्टी कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं में नयी ऊर्जा भरेगा। यह कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखने वाले पीएम मोदी के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं है।
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