पाँच विधानसभा चुनावों के नतीजों से निकले हैं पाँच बड़े निष्कर्ष। इन चुनावों ने कई बड़े मिथकों को तोड़ा और सत्तारूढ़ दल बीजेपी को गंभीर चिंतन की ज़रूरत बताई।
न तो अजीत जोगी की पैंतरेबाज़ी काम आई और न ही बीजेपी एंटी-इन्कम्बेंसी से पार पा पाई। बिना चेहरे के ही कांग्रेस ने नई तसवीर पेश कर दी। बल्कि यूँ कहें तो बदल डाली।
पाँच राज्यों में एग्ज़िट पोल के नतीजे बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। तो क्या राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के नतीजों का असर लोकसभा चुनाव पर होगा?
योगी के मंत्री राजभर लगातार बीजेपी को परेशान क्यों कर रहे हैं? उन्होंने बुलंदशहर हिंसा पर ऐसा क्या बोला कि लोग बधाई देने लगे? सुनिए, वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी. सिंह से।
पश्चिम बंगाल में तेजी से पैर पसारने की नीति के तहत ही बीजेपी ने महज 5 पार्षदों के बल पर मेयर का चुनाव लड़ा। उसे शोभन चटर्जी से उम्मीद थी कि वे कुछ मदद करेंगे।
किसी दल को 90 फ़ीसदी ही वोट क्यों चाहिए? ज़्यादा से ज़्यादा या 100 फ़ीसदी तक क्यों नहीं? यदि यह सवाल आपको भी बेचैन करता है तो कोई बात नहीं, यह सवाल ही कुछ ऐसा है।
एक ओर करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास तो दूसरी ओर आतंकवाद फैलाने की साज़िश। शिलान्यास से अगर कोई भ्रम पैदा होता हो कि माहौल में सुधार हो रहा है तो यह ख़ुशफ़हमी है।
पाक के सेना प्रमुख बाजवा से गले मिलने के कारण सिद्धू बीजेपी और राष्ट्रवादी चैनलों के लिए खलनायक बने हुए हैं। लेकिन पाक के असली खेल की तरफ़ किसी का ध्यान नहीं है।
केन्द्र और आरबीआई के बीच काफ़ी समय से बैंक के ख़ज़ाने को लेकर तनातनी चल रही है। सरकार चाहती है कि आरबीआई इसमें से कुछ हिस्सा अपने पास रखे और बाकी पैसा उसे दे दे।
सत्यपाल मलिक केंद्र को इतना नाराज़ भी नहीं करना चाहते थे कि विपक्ष की सरकार बनवा दें। इसलिए उन्होंने बीच का रास्ता चुना कि न इसकी सरकार बने, न उसकी सरकार बने।