2024 के लोकसभा चुनाव से पहले क्या बीजेपी अब पसमांदा मुस्लिमों को लुभाना शुरू कर दिया है? आख़िर एएमयू के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को बीजेपी का उपाध्यक्ष नियुक्त करने के मायने क्या हैं?
विपक्ष के इंडिया नाम को भाजपा ने इतना मशहूर कर दिया है, इसकी कल्पना इंडिया नाम देने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी नहीं की होगी। लेकिन पत्रकार राकेश अचल लिख रहे हैं - बिखरे विपक्ष की एकजुटता सत्तारूढ़ दल के लिए अचानक चुनौती में कैसे बदल गयी, ये समझ से बाहर है। पढ़िए उनके विचारः
क्या आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच लोकसभा चुनाव के लिए सीटों का बंटवारा इतना आसान काम होगा? जानिए, इसके लिए कांग्रेस के सामने कितनी बड़ी मुसीबत आ सकती है।
'ओपनहाइमर' का विरोध करने वाले लोग कौन हैं? क्या उन लोगों ने गीता पढ़ी है, फिल्म देखी है? क्या वे द्वितीय विश्वयुद्ध और परमाणु हमलों को ठीक से समझते हैं? भावनाएँ कैसे आहत हो रही हैं?
लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन के बाद बीजेपी भी एनडीए के लिए 38 दलों को साथ जोड़ रही है। ऐसे गठबंधन के बाद भी जानिए कौन से 9 राज्य हैं जहाँ से जीत-हार तय होगी।
राफेल डील फिर से चर्चा में आ गई है। पीएम मोदी के फ्रांस दौरे ने पुरानी डील के विवाद को भी ताजा कर दिया है। समझिए पत्रकार कृष्ण प्रताप सिंह क्या बताना चाह रहे हैं।
सरकार की परेशानी क्या क्या है, वो कैसे जूझती है। हम आप क्या जानें। लेकिन लेखक राकेश अचल सरकार की परेशानी कुछ-कुछ समझ रहे हैं। इसे पढ़कर आप भी उनसे समझ सकते हैं।
पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव में ममता बनर्जी की टीएमसी ने बड़ी जीत दर्ज की है। बंगाल में भाजपा ने पूरा जोर लगा दिया था लेकिन वो दूसरे नंबर पर रही। बंगाल में भाजपा के लिए इसे सही संकेत नहीं माना जा रहा है।
क्या आपको पता है कि अनुच्छेद 370 में बदलाव किया गया है, इसको ख़त्म नहीं? क्या अनुच्छेद 370 को समाप्त किया जा सकता है? और यदि हाँ तो कैसे? और नहीं तो क्यों?
सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 में बदलाव को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा। तो क्या इस पर चौंकाने वाला फ़ैसला आएगा? यदि ऐसा हुआ तो अनुच्छेद 35ए के हटाने की मांग करने वालों को क्या झटका नहीं लगेगा?
महाराष्ट्र में एनसीपी में बगावत के बाद अब बिहार में नीतीश कुमार के जेडीयू को लेकर अलग-अलग कयास क्यों लगाए जा रहे हैं? जानिए, आख़िर बिहार की राजनीति में चल क्या रहा है।
अजित पवार के पास भी उतने ही विधायक हैं जितने शिंदे के। तो क्या राजनैतिक तौर पर अब एकनाथ शिंदे बीजेपी की मजबूरी नहीं रह गये हैं? क्या राज्य में अब राजनीतिक समीकरण बदलेंगे?