दस वर्षों से देश की सत्ता संभाल रही भाजपा के पास जनता के सामने परोसने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है। अब ऐसे में उन मुद्दों के जरिये जंग जीतने की कोशिश की जा रही है जो दरअसल मुद्द्दे हैं ही नहीं। सनातन धर्म पर बाबा साहब आंबेडकर के सवालों का जवाब देने की बजाय भाजपा धर्म को खतरे में बता रही है। ऐसे में खतरे में कौन है, इसे समझना मुश्किल नहीं है।
खालिस्तानी तत्व देश से ज्यादा विदेश में सिर उठा रहे हैं। कुछ देशों में राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी एनआईए ने इनकी पहचान भी की है। भारत के खिलाफ किसी भी अलगाववादी आंदोलन का समर्थन नहीं किया जा सकता। इसलिए ऐसे तत्वों को सख्ती से कुचलना जरूरी है।
क्या घोसी उपचुनाव नतीज़ों को लेकर विपक्षी गठबंधन इंडिया यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूशिव एलायंस की 1977 के जनता प्रयोग से तुलना की जा सकती है? जानिए, क्या समानता है।
संसद के विशेष सत्र पर कयासबाजियों का दौर जारी है। सरकार कुछ साफ नहीं कर रही है। उसने कहा कि जब सत्र शुरू होगा तो एजेंडा बता दिया जाएगा। यह मनमानी है। यानी देश तब तक अंधेरे में रहे कि हमारे सत्ताधीश विशेष सत्र में क्या करने वाले हैं। राकेश अचल को पढ़िए कि वो क्या सोच रहे हैं।
मुंबई में दो दिन के लिए जुटे 28 दलों के संगठन इंडिया के पोस्टरों में लिखा गया कि जुड़ेगा भारत तो जीतेगा इँडिया...ये बहुत ही सही लाइन है जो विपक्षी दलों के गठबंधन ने ली है. असल में इंडिया नाम रखने पर ही कई लोगों ने सवाल उठाया था, तब से ही कहा जाने लगा था कि नीतिश कुमार नाराज हैं कि भारत नहीं है। इसलिए अब इंडिया और भारत दोनों को ही उसके नारे और लोगो यानि चिन्ह में शामिल कर लिया गया है.
क्या महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार वाले खेमों के गठबंधन में सबकुछ सही नहीं चल रहा है? आख़िर मंत्रिमंडल क्यों नहीं अब तक बन पाया?
प्रधानमंत्री का 15 अगस्त का भाषण बताता है कि भाजपा 2024 का लोकसभा चुनाव अमेरिकी स्टाइल में शख्सियत केंद्रित बनाना चाहती है। इसीलिए मोदी अब खुद को केंद्र में रखकर हर बात कह रहे हैं। पत्रकार सुदीप ठाकुर ने पीएम के भाषण का विश्लेषण अलग तरह से किया है।
चुनाव आयोग ने अभी तक विधानसभा चुनाव के लिए तारीख़ों का ऐलान भी नहीं किया है और बीजेपी ने दो राज्यों में अपने उम्मीदवारों की पहली सूची भी जारी कर दी है। जानिए, बीजेपी ने ऐसा क्यों किया।
लोकसभा चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री मोदी इतने आश्वास्त क्यों नज़र आ रहे हैं? और चुनाव को लेकर विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के हौसले इतने बुलंद क्यों है? जानिए, किसका पलड़ा भारी है।
कांग्रेस का इतिहास है कि वो जन आंदोलनों के जरिए सत्ता के शिखर पर पहुंची है। लेकिन कांग्रेस के कुछ नेता बाबाओं की शरण में जाकर कांग्रेस के विचार को खंडित कर देते हैं। मध्य प्रदेश में सत्ता के नजदीक विवादास्पद धीरेंद्र शास्त्री की शरण में आखिर कांग्रेस नेता कमलनाथ को जाने की क्या जरूरत थी।
गोरखपुर में हाल ही में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जिससे पत्रकार स्वदेश कुमार सिन्हा को लग रहा है कि भाजपा योगी आदित्यनाथ का विकल्प तलाश रही है। बेशक उनके तर्कों से कोई सहमत न हो, लेकिन यह तो तय है कि योगी आदित्यनाथ का बढ़ता कद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में कुछ लोगों को जरूर खटक रहा है।
पाकिस्तान में आख़िर क्या चल रहा है? नेशनल एसेंबली के भंग करने की घोषणा और फिर इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी। जानिए, इन घटनाओं का भारत पर कैसा असर हो सकता है।
राजस्थान में विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुद्दा क्या होगा? क्या यह लाल डायरी बनाम लाल सिलेंडर होने वाला है? जानिए, चुनाव कैसे रोचक हो गया है।