दो दिन के इस सम्मेलन में सबसे बड़ा सवाल भी यही है कि ये गठबंधन तो बन गया है लेकिन क्या ये गठबंधन यानि इंडिया जमीन पर भारत को अपने साथ जोड़ने में कामयाब होगा या नहीं. दो दिन के मंथन में ये बात जो जरुर दिखी कि अभी दल मिल गये और दिल मिलने का काम हो रहा है. अभी गठबंधन पर सहमति मिलती दिखायी दे रही है और अगर ये आगे सचमुच जमीन पर भी मिलने में कामयाब हो गये तो एनडीए यानि मोदी सरकार को बहुत बड़ी चुनौती मिल सकती है.
सम्मेलन में हालांकि सारे बड़े दलों के नेता अपना अपना अस्तित्व और अहमियत दोनों ही दिखाने की कोशिश करते नजर आये और ये बात यहीं तक रहे तो ठीक है .ये इगो यानि अहं की लड़ाई न बने तो इसे नजरअंदाज किया जा सकता है. सम्मेलन में आये हुए दलों के नेता अपनी खबर बनाते दिखे .,ममता बनर्जी सीधे जाकर सदी के महानायक अभिताभ बच्चन से जा मिली तो अखिलेश यादव एयरपोर्ट से ही अपनी समाजवादी पार्टी का जलवा दिखाते रहे . लालू यादव सिद्धि विनायक मंदिर जाकर फोटो खिचाते रहे तो राहुल गांधी ने सम्मेलन से पहले ही प्रेस कांफ्रेंस कर अगले संसद सत्र के लिए अडानी का एजेंडा तय कर दिया . इस तरह की रणनीति ठीक नहीं . अलग अलग चलने से सम्मेलन का एजेंडा गड़बड़ हो सकता है.
इस बीच एक बात पर सहमति दिखी कि समन्वय के लिए समितियां बना दी जायें जो हर राज्य में सीटवार बातचीत करेगीं , पहले राज्यस्तर पर बात होगी और उसके बाद समिती मिलकर तय करेगीं कि कौन सी सीट पर कौन लड़ेगा . लगभग 300 सीट पर बात बनती हुई दिख रही है जबकि 150 सीट पर स्ट्रेटेजिक और लोकल अलायंस होगा. कुछ सीटों खासकर नार्थ ईस्ट और बंगाल पर समझौता होने की कम उम्मीद दिख रही है .इस बीच सोनिया गांधी लगातार पर्दे के पीछे सारी पार्टियों के प्रमुख से बात कर रही है और ये तय किया गया है कि चुनाव तक कोई अध्यक्ष या संयोजक नहीं रहेगा ताकि मोदी बनाम चेहरे की लड़ाई से बचा जा सके.
इस बैठक का असर इसे कवर करने आये पत्रकारों और खबरिया चैनलों पर भी दिख रहा है . कुछ खबरिया चैनलों से कल ये खबर देखने की कोशिश की कि राहुल गांधी की अडानी पर प्रेस कांफ्रेस से पहले शरद पवार ने उनको रोकने की कोशिश की .मगर असल में ऐसा कुछ नही हुआ तो दूसरी खबर शाम तक चलायी गयी कि विशेष सत्र में एक देश एक चुनाव का बिल आ रहा है .राहुल में बैठक मे ही कह दिया कि ये सब ध्य़ान भटकाने के लिए है ऐसा कुछ नहीं होने वाला.
वैसे भी जन प्रतिनिधि कानून में बदलाव के लिए संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत ही नहीं कम से कम 12 विधानसभाओं में इसका प्रस्ताव पारित होना जरुरी है जो अभी संभव नहीं है. ये बस सच में खबर बदलने की कोशिश है जो कल सफल होती दिखी. इंडिया गठबंधन इससे कम ही विचलित दिखा लेकिन सारे दल चाहते है कि सीटों का बंटवारा जल्दी हो जाये ताकि वो काम कर सकें लेकिन कांग्रेस की कोशिश है कि कम से कम चार राज्यों के विधानसभा चुनाव तक इसे टाला जाये ताकि अगर इन राज्यों में उसका प्रदर्शन ठीक रहा तो उसकी हैसियत बढ़ जायेगी और वो ज्यादा से ज्यादा सीटें ले सकेगी.
लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी दलों के गठबंधन को 'इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस' (इंडिया) नाम दिया गया है. गठबंधन की पहली बैठक बिहार की राजधानी पटना में जून के महीने में हुई थी. गठबंधन की दूसरी बैठक जुलाई महीने में बेंगलुरू में हुई थी. इस बैठक में 26 दलों साथ आए थे और इस गठबंधन को इंडिया नाम दिया गया था. वहीं अब गठबंधन की तीसरी बैठक में 28 दलों के 63 नेता शामिल हुए हैं.
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