loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
51
एनडीए
29
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
225
एमवीए
52
अन्य
11

चुनाव में दिग्गज

हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट

आगे

पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व

आगे

प्रजातंत्र को कैसे मारा जाता है...भारत का उदाहरण सामने है

“लद गए वो दिन जब दुनिया में फासिज्म, डिक्टेटरशिप, कम्युनिज्म और सैनिक शासन हुआ करता था. अब डेमोक्रेसी को मारने का तरीका बैलट-बॉक्स के जरिये है. आज सैनिक विद्रोह या अन्य हिंसक तरीकों से सत्ता हड़पने की घटनाएँ एक्का-दुक्का होती हैं. दुनिया के तमाम देशों में आज नियमित चुनाव होते हैं. प्रजातंत्र फिर भी मरता है लेकिन उसका तरीका कुछ अलग है. अब चुनी हुई सरकारें हीं इस प्रजातांत्रिक शासन पद्धति का खून करती हैं बड़े प्यार से. वेनेजुएला, जॉर्जिया, हंगरी, निकारागुआ, पेरू, चिली, फिलिपीन्स, पोलैंड, रूस, टर्की, पोलैंड और श्रीलंका इसके उदाहरण हैं. आज सेना के टैंक सडकों पर नहीं होते. प्रजातान्त्रिक संस्थाएं देखने में वैसी की वैसी दीखती हैं. लोग मतदान करते हैं. और जो सत्ता में आता है डेमोक्रेसी का मुलम्मा बरक़रार रखते हुए अन्दर से उसकी अतड़ियां निकाल लेता है. ऐसे देशों में प्रजातंत्र के आवरण में सब कुछ कानूनी लगेगा. दावा किया जाएगा कि पहले का प्रजातंत्र गलत था और इसे मजबूत करना होगा. इस प्रक्रिया में न्यायपालिका से छेड़छाड़ की जायेगी. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के नाम पर संस्थाओं की स्वायत्तता ख़त्म की जायेगी”
उपरोक्त निष्कर्ष मशहूर पुस्तक “प्रजातंत्र के मौत कैसे होती है” (हाउ डेमोक्रेसीज डाई) के लेखक –स्टीवन लेवित्सकी और डेनिअल जिब्लेट-- का है. पुस्तक वर्ष 2018 में छपी थी और तब भारत में मोदी शासन की “गुणवत्ता” के बारे में उतना खुलके तथ्य नहीं आ सके थे. लेकिन आज जब भारत की स्थितियां देखी जाती हैं तो लगता है कि लेखक-द्वय शत-प्रतिशत सही है. 
ख़ास ख़बरें
भारत में अफसरशाही और विपक्ष को धमकाया जा रहा है और जो साथ आएंगे उन्हें “जांबख्शी” दी जाती है. वरना उसे पीएमएलए की धारा ४५(अ) में महीनों बगैर दोष सिद्ध हुए जेल रखा जाता है और प्रॉपर्टी जब्त कर ली जाती है. अगर किसी धर्म विशेष का है और तत्काल किसी आपराधिक कृत्य में शामिल है तो बैक डेट में नोटिस दे कर (ताकि कानून के पालन का नाटक चलता रहे) प्रॉपर्टी पर बुलडोजर चला दिया जाता है.
यह मोदी शासन का हीं कमाल था कि कानून संसद में पारित हुए लेकिन विपक्ष को आवाज उठाने के पहले हीं निकाल दिया गया. किसान कानून बिल पर विपक्ष मतदान की मांग करता रहा पर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया गया. लोकसभा का स्पीकर या राज्यसभा का सभापति भौडे ढंग से सरकार के लिए बैटिंग करते नज़र आयेंगें. 2015 में नेशनल जूडिशल कमीशन (एनजेएसी) कानून पारित कर कॉलेजियम सिस्टम को ख़त्म करना इसी प्रक्रिया का हिस्सा है. सभापति महोदय का जनमंचों से और सदन में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम सिस्टम के खिलाफ दिनरात बोलना इसका एक नया पहलू है. अखबारात आज भी साया होते हैं लेकिन उन्हें या तो सरकारी विज्ञापन से खरीद लिया गया होता है या ईडी की दहशत से सेल्फ-सेंसरशिप के लिए मजबूर होना पड़ता है.
दरअसल आपने राजकुमार का मशहूर डायलाग “लखनऊ में ऐसी वो कौन सी फिरदौस है जिसे हम नहीं जानते” सुना होगा। नए दौर के गवर्नेंस मॉडल में भी यह देखा जा रहा है कि वो कौन सी संस्था या उसके किरदार हैं जो “मा-बदौलत की कदमों में नहीं झुके हैं”. एससी आज भी अपनी कोलेजियम की ताकत से जजों की नियुक्ति का भगवाकारण रोक सकी है. लेकिन कब तक ?  
पिछले हफ्ते पीएम मोदी ने कहा कि जनता चकोर की तरह सकारात्मक खबरों रूपी "स्वाति की बूंद" की भूखी होती है. लेकिन यह जानना जरूरी है कि सकारात्मक खबरें कौन सी होती है. भारत में प्रजातंत्र द्वंदात्मक है जैसा ब्रिटेन या अमेरिका में है. इसमें पक्ष होता है, विपक्ष होता है और ये दोनों विधायिकाओं में, लोकमंचों से या संचार माध्यमों से मुद्दे पर दावा-प्रतिवाद करते हैं. इनके ठीक आसपास कहीं स्वतंत्र मीडिया होती है.
भारी जनमत से चुनी हुई सरकार भी यह कह कर नहीं बच सकती कि जनता ने उन्हें एक अवधि के लिए चुना है और अवधि पूरी होने पर वह जनता को हीं जवाब देगी. विधायिकाओं में शून्य-प्रहर, प्रश्न-काल, अविश्वास प्रस्ताव, कार्य-स्थगन प्रस्ताव आदि प्रक्रियाएं होती हैं ताकि जन-सरोकार और लोक कल्याण के मुद्दे पर क्या काम हुआ या नहीं हुआ, चर्चा हो सके. मीडिया उन्हें जनता तक पहुंचाती है और स्वयं भी सरकार के वादों और वास्तविक अमल या ऐसा सरोकार के मुद्दों पर सरकार की गलतियाँ बताती है. हाँ, सिर्फ वे ही मुद्दे सकारात्मक खबरों की सीमा या मर्यादा में आते हैं जिसमें किसी समाज या व्यक्ति ने मूल्य या प्रतिमान स्थापित किया है जैसे मजदूर के बेटे का आईएएस में टॉप करना, एक गरीब महिला का उद्यमी बन कर गाँव की लड़कियों को काम देना या किसी प्रतिभाशाली डॉक्टर का करोड़ों की प्रैक्टिस छोड़ सुदूर जंगल के नक्सली इलाकों में गरीबों का इलाज करना. कोई सरकार अगर लोक कल्याण के कार्य करती है तो यह कोई जनता पर अहसान नहीं है. 
विश्लेषण से और खबरें
भाखड़ा नंगल बाँध हो या आजादी के प्रथम दशक के बाद हीं पांच आईआईटी की स्थापन या हाल में गरीबों को पांच किलो अनाज देना या सड़कें या एअरपोर्ट बनवाना, ये सभी विकास के क्रम में आये पड़ाव हैं. सरकार अच्छे काम करने के लिए हीं चुनी जाती है. हाँ, मीडिया की भूमिका तभी आती है जब विकास के कार्य सुस्त हों या पूर्व में किये गए वादे के अनुरूप नहीं हों. याने मोदी जी की माने तो ऐसी कोई खबर जिसमें सरकार की निंदा हो, वह जनता ख़ारिज करती है और केवल उन्हीं खबरों का उन्हें इन्तेजार रहता है जिसमें मोदी की वाहवाही हो.
प्रजातंत्र मर रहा है लेकिन तिल-तिल कर और धीरे-धीरे. जनता स्वाति की बूँद की तरह इसे पी रही है.
(लेखक एन के सिंह ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए) के पूर्व महासचिव हैं)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विश्लेषण से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें