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कर्नाटक विधानसभा एक्सप्लेनर : 48.76% का सदन, कांग्रेस विधायकों को 29.49% वोट

विधायकों से ज्यादा अगर हारे हुए उम्मीदवारों को वोट मिले तो इसे सफल संसदीय लोकतंत्र कहा जाए या नहीं- बड़ा सवाल है। इस सवाल से बचने और बचते रहने का मतलब है सच्चे लोकतंत्र से देश को दूर रखना। हालांकि कर्नाटक ऐसा पहला प्रदेश नहीं है जहां हारे हुए उम्मीदवारों को जीते हुए विधायकों से ज्यादा वोट मिले हैं लेकिन कभी इसकी चर्चा नहीं हुई।कर्नाटक में हारे हुए उम्मीदवारों को 1.94 करोड़ वोट मिले हैं जबकि जीते हुए विधायकों को कुल 1.89 वोट मिले हैं। विधायकों को 48.76% वोट मिले हैं जबकि हारे हुए उम्मीदवारों को 51.24% वोट हासिल हुए हैं।

कांग्रेस विधायकों को मिले 29.49% वोट

सत्ता में प्रचंड बहुमत से आयी कांग्रेस को 224 में से 135 सीटें मिली हैं। कांग्रेस के लिए यह संतोष की बात है कि उसके विधायकों को मिले वोट उसके हारे हुए प्रत्याशियों को मिले वोट से ज्यादा है। कांग्रेस के विधायकों को कुल 1,14,42,546 वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस के हारे हुए उम्मीदवारों को 53,46,726 वोट मिले हैं। 

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार 42.9% वोट शेयर के साथ कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बन रही है। मगर, सच यह है कि सरकार बनाने में जिन 135 विधायकों का योगदान होगा उन्हें मिले वोटों का प्रतिशत महज 29.49 है। सवाल यही है कि 42.9% वोट हासिल करके भी क्या कर्नाटक में स्थिर सरकार रहेगी, इसकी गारंटी दी जा सकती है? कभी भी कोई ऑपरेशन लोटस विधायकों की निष्ठा का व्यापार कर सकती है और सरकार अस्थिर हो जा सकती है। जब एक बार किसी दल को 42.9% वोट मिल जाए और वह निर्णायक हो तो उसकी सरकार विधायकों की निष्ठा का मोहताज क्यों रहे?

विधायकों की ताकत हैं मतदाता। मतदाताओं का बहुमत है कर्नाटक में कांग्रेस के साथ। इस बहुमत में विधायकों को मिले वोटों के साथ-साथ हारे हुए उम्मीदवारों के वोटों की भी ताकत है। ये वोट कांग्रेस को उसके चुनाव चिन्ह पर मिले वोट हैं। ऐसे में सरकार की स्थिरता केवल विधायकों के भरोसे क्यों छोड़ी जाए? 

बीजेपी-जेडीएस के हारे उम्मीदवारों को विधायकों से ज्यादा वोटः संसदीय लोकतंत्र के प्रचलित दुर्गुण को एक और तरीके से समझते हैं। कर्नाटक में चुनाव आयोग के आंकड़ों में हारे और जीते हुए उम्मीदवारों के साथ बीजेपी को 36 फीसदी वोट प्राप्त हुए हैं। मगर, बीजेपी के 66 उम्मीदवारों को महज 55,62,591 वोट ही प्राप्त हुए हैं। यही विधानसभा में विपक्ष की ताकत है। यह वोट 14.33% है।
जेडीएस को कुल मिलाकर 13.2% वोट और 19 सीटें मिली हैं। लेकिन, जेडीएस के जीते हुए विधायकों को मिले वोटों की संख्या 15,92,003 है और यह कुल मतदान का 4.10% है। भविष्य में कभी भी जब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को गिराने की कोशिश होगी तो बीजेपी और जेडीएस के अलावा खुद कांग्रेस के विधायकों की निष्ठा बदलकर ही यह संभव है। सरकार बनाने-गिराने के खेल में सारी लड़ाई का केंद्र होता है 113 विधायकों का आंकड़ा। 14.3 और 4.1 प्रतिशत वोट वाले दल क्रमश: बीजेपी और जेडीएस मिलकर ये खेल कर सकते हैं। 23 विधायकों के इधर-उधर करने से मैजिक फिगर इधर से उधर हो जा सकता है।

विधायकों पर निर्भर क्यों हो सरकार?

सवाल यही है कि सरकार गिराने के लिए या नयी सरकार बनाने के लिए केवल 29-30 फीसदी वोटों की हिस्स्दारी वाले विधायकों की गिनती ही क्यों अचूक शस्त्र बना रहे? सरकार बनाने या गिराने में सभी मतदाताओं की भूमिका को हम क्यों नहीं निश्चित करते? कम से कम एक सिंबल पर वोट करने वाले मतदाताओं के समूह की ताकत को हमें एकजुट क्यों नहीं रखना चाहिए? जब विधायकों के बहुमत और मतदाताओं के बहुमत में तुलना का वक्त आए तो मतदाताओं को क्यों नहीं वजन दिया जाना चाहिए? 

कर्नाटक या किसी भी प्रदेश के चुनाव में और यहां तक कि आम चुनाव में भी चर्चा इसी बात की रहती है कि किस दल को कितनी सीटें मिलीं या किस दल को कितने वोट प्रतिशत प्राप्त हुए। मगर, जिस बात की बिल्कुल चर्चा नहीं होती वह है कि सदन जिन विधायकों या सांसदों से बनने जा रहा है उसे वास्तव में कितने वोटों का समर्थन है। जिज्ञासा यह भी रहती है कि सत्ता पक्ष के विधायकों को कुल कितने वोट मिले और विपक्ष के विधायकों को कितने वोट मिले? सदन में आए विधायकों को कितने मतदाताओं ने अपना समर्थन दिया है- यह भी अहम बात होती है जिसे जानना जरूरी है।
224 विधानसभा सीटों वाले कर्नाटक में 5.3 करोड़ वोटर हैं। इनमें से 73.19 प्रतिशत ने रिकॉर्ड मतदान किया। यानी करीब 3.88 करोड़ मतदाताओं (रद्द वोट और नोटा समेत) ने वोट डाले। जीते हुए उम्मीदवारों को मिले वोटों को जोड़ने से पता चलता है कि 224 विधायकों को कुल 1,89,24,781 वोट मिले हैं। यह प्रदेश में कुल मतदान का 48.78% है।

हारे हुए उम्मीदवारों की ताकत सदन में मौजूद विधायकों से बड़ी

हारे हुए उम्मीदवारों को 1 करोड़ 98 लाख 75 हजार से ज्यादा वोट मिले। इसका मतलब यह हुआ कि कर्नाटक विधानसभा निर्मित होने में केवल 1.89 करोड़ से कुछ ज्यादा वोटों का इस्तेमाल हुआ। 1 करोड़ 98 लाख 75 हजार वोटों का इसमें कोई योगदान नहीं था। इन आंकड़ों का निष्कर्ष यह है कि ‘हर वोट कीमती होता है’ वाला नारा जुमला है। वोट तो वही कीमती है जिनसे सदन का निर्माण हो रहा हो।बाकी वोट जिनका इस्तेमाल सदन के निर्माण में नहीं हुआ, उसे कीमती कैसे माना जाए? क्या वे वोट बेकार हो गये?

दरअसल वर्तमान व्यवस्था में सदन के निर्माण में योगदान नहीं करने वाले वोटों को राजनीतिक दल को प्राप्त कुल वोट से जोड़ दिया जाता है और इस तरह राजनीतिक दल के सामर्थ्य के रूप में इसकी अभिव्यक्ति होती है। मगर, इससे सदन के सामर्थ्य का कोई संबंध नहीं होता। उदाहरण के लिए कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस को 42.9%, बीजेपी को 36%, जेडीएस को 13.3% वोट मिले। ये वोट प्रतिशत राजनीतिक दलों को मिले कुल वोटों के हैं। लिहाजा इसमें हारे हुए उम्मीदवारों के वोट भी शामिल हैं।

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प्रश्न यही है कि जब सरकार बनाने में केवल जीते हुए विधायकों के वोट शामिल होते हैं तो राजनीतिक दल को प्राप्त वोट बताते समय हारे हुए उम्मीदवारों के वोट भी जोड़कर क्यों बताए जाएं? इससे राजनीतिक दल की ताकत का पता तो चलता है लेकिन वास्तव में संसदीय प्रजातंत्र में इस आंकड़े की कोई अहमियत नहीं है।

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क़मर वहीद नक़वी
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