“
मैं यह बात पहले से कहता रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि आप इतनी आसानी से मूर्खता के इस नशे से बाहर नहीं आ सकते लेकिन एक बार फिर अपील करता हूँ कि बस इन ढाई महीनों के लिए न्यूज़ चैनलों को देखना बंद कर दीजिए।
रवीश कुमार
तनाव पैदा करने में जुटे
जब पाकिस्तान से तनाव नहीं होता है तब ये चैनल मंदिर को लेकर तनाव पैदा करते हैं, जब मंदिर का तनाव नहीं होता है तो ये चैनल पद्मावती फ़िल्म को लेकर तनाव पैदा करते हैं और जब फ़िल्म का तनाव नहीं होता है तो ये चैनल कैराना के झूठ को लेकर हिन्दू-मुसलमान के बीच तनाव पैदा करते हैं। जब कुछ नहीं होता है तो ये फर्ज़ी सर्वे पर घंटों कार्यक्रम करते हैं जिनका कोई मतलब नहीं होता है।
नौजवानों के सवाल नहीं होते
न्यूज़ चैनलों में नौजवानों के तमाम सवालों के लिए जगह नहीं होती, मगर चैनल अपना सवाल पकड़ा कर उन्हें मूर्ख बना रहे हैं। चैनलों को ये सवाल कहाँ से मिलते हैं, आपको पता होना चाहिए। ये अब जो कुछ भी करते हैं, उसी तनाव के लिए करते हैं जो एक नेता के लिए रास्ता बनाता है। जिनका नाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी है।
न्यूज़ चैनलों, सरकार, बीजेपी और मोदी इन सबका विलय हो चुका है। यह विलय इतना बेहतरीन है कि आप फर्क नहीं कर पाएँगे कि यह पत्रकारिता है या प्रोपेगैंडा।
प्रोपेगैंडा परोस रहे चैनल
आप एक नेता को पसंद करते हैं। यह स्वाभाविक है और बहुत हद तक ज़रूरी भी। लेकिन उस पसंद का लाभ उठाकर इन चैनलों के द्वारा जो किया जा रहा है, वह ख़तरनाक है। बीजेपी के भी ज़िम्मेदार समर्थकों को सही सूचना की ज़रूरत होती है। सरकार और मोदी की भक्ति में प्रोपेगैंडा को परोसना उस समर्थक का भी अपमान है। आज के न्यूज़ चैनल न सिर्फ़ सामान्य नागरिक का अपमान करते हैं बल्कि उसके साथ बीजेपी के समर्थकों का भी अपमान कर रहे हैं।
बीजेपी समर्थक भी रहें दूर
मैं बीजेपी समर्थकों से भी अपील करता हूँ कि आप इन चैनलों को न देखें। आप भारत के लोकतंत्र की बर्बादी में शामिल न हों। क्या आप इन बेहूदा चैनलों के बग़ैर नरेंद्र मोदी का समर्थन नहीं कर सकते? क्या यह ज़रूरी है कि नरेंद्र मोदी का समर्थन करने के लिए पत्रकारिता के पतन का भी समर्थन किया जाए? फिर आप एक ईमानदार राजनीतिक समर्थक नहीं हैं।
क्या श्रेष्ठ पत्रकारिता के मानकों के साथ मोदी का समर्थन करना असंभव हो चुका है? बीजेपी समर्थकों, आपने बीजेपी को चुना था, इन चैनलों को नहीं। मीडिया का पतन राजनीति और एक अच्छे समर्थक का भी पतन है।
मोदी पत्रकारिता के इस पतन के अभिभावक हैं। उनकी भक्ति में चैनलों ने ख़ुद को भांड बना दिया है। वे पहले भी भांड थे मगर अब वे आपको भांड बना रहे हैं। आपका भांड बन जाना लोकतंत्र का मिट जाना होगा।
झूठे नारों से गढ़ी जा रही देशभक्ति
चैनलों पर जिस तरह का हिन्दुस्तान गढ़ा जा चुका है, उनके ज़रिए आपके भीतर जिस तरह का हिन्दुस्तान गढ़ा गया है, वह हमारा हिन्दुस्तान नहीं है। वह एक नकली हिन्दुस्तान है। देश से प्रेम का मतलब होता है कि हम सब अपना अपना काम उच्च आदर्शों और मानकों के हिसाब से करें। हिम्मत देखिए कि झूठी सूचनाओं और अनाप-शनाप नारों और विश्लेषणों से आपकी देशभक्ति गढ़ी जा रही है। आपके भीतर देशभक्ति के प्राकृतिक चैनल को ख़त्म कर ये न्यूज़ चैनल कृत्रिम चैनल बनाना चाहते हैं। ताकि आप एक मुर्दा रोबोट बन कर रह जाएँ।
इस वक़्त के अख़बार और चैनल आपकी नागरिकता और नागरिक अधिकारों के ख़ात्मे का एलान कर रहे हैं। आपको सामने से दिख जाना चाहिए कि ये होने वाला नहीं बल्कि हो चुका है।
हिन्दी अख़बारों को पढ़ना बंद करें
अख़बारों के हाल भी वही हैं। हिन्दी के अख़बारों ने तो पाठकों की हत्या की सुपारी ले ली है। ग़लत और कमज़ोर सूचनाओं के आधार पर पाठकों की हत्या ही हो रही है। अखबारों के पन्ने भी ध्यान से देखें। हिन्दी अख़बारों को उठा कर घर से फेंक दें। एक दिन अलार्म लगाकर सो जाइए। उठकर हॉकर से कह दीजिए कि भइया चुनाव बाद अख़बार दे जाना।
विपक्ष बनने की संभावना ख़त्म
यह सरकार नहीं चाहती है कि आप सही सूचनाओं से लैस सक्षम नागरिक बनें। चैनलों ने विपक्ष बनने की हर संभावना को ख़त्म किया है। आपके भीतर अगर सरकार का विपक्ष न बने तो आप सरकार का समर्थक भी नहीं बन सकते। होश में सपोर्ट करना और नशे का इंजेक्शन देकर सपोर्ट करवाना दोनों अलग बातें हैं। पहले में आपका स्वाभिमान झलकता है। दूसरे में आपका अपमान। क्या आप अपमानित होकर इन न्यूज़ चैनलों को देखना चाहते हैं, इनके ज़रिए सरकार को समर्थन करना चाहते हैं?
मैं जानता हूँ कि मेरी यह बात न करोड़ों लोगों तक पहुँचेगी और न करोड़ों लोग न्यूज़ चैनल देखना छोड़ेंगे। मगर मैं आपको आगाह करता हूँ कि अगर यही चैनलों की पत्रकारिता है तो भारत में लोकतंत्र का भविष्य सुंदर नहीं है।
न्यूज़ चैनल एक ऐसी पब्लिक गढ़ रहे हैं जो ग़लत सूचनाओं और सीमित सूचनाओं पर आधारित होगी। चैनल अपनी बनाई हुई इस पब्लिक से उस पब्लिक को हरा देंगे जिसे सूचनाओं की ज़रूरत होती है, जिसके पास सवाल होते हैं। सवाल और सूचना के बग़ैर लोकतंत्र नहीं होता। लोकतंत्र में नागरिक नहीं होता।
सत्य और तथ्य की संभावना समाप्त
सत्य और तथ्य की हर संभावना समाप्त कर दी गई है। मैं हर रोज़ पब्लिक को धकेले जाते देखता हूँ। चैनल पब्लिक को मंझधार में धकेल कर रखना चाहते हैं। जहाँ राजनीति अपना बंवडर रच रही है। राजनीतिक दलों से बाहर के मसलों की जगह नहीं बची है। न जाने कितने मसले इंतज़ार कर रहे हैं।
चैनलों ने अपने संपर्क में आए लोगों को लोगों के ख़िलाफ़ तैयार किया है। आपकी हार का एलान है इन चैनलों की बादशाहत। आपकी ग़ुलामी है इनकी जीत। इनके असर से कोई इतनी आसानी से नहीं निकल सकता है। आप एक दर्शक हैं। आप एक नेता का समर्थन करने के लिए पत्रकारिता के पतन का समर्थन मत कीजिए। सिर्फ़ ढाई महीने की बात है। चैनलों को देखना बंद कर दीजिए।- रवीश कुमार के फ़ेसबुक पेज से साभार
अपनी राय बतायें