आपने टीवी चैनलों, वेबसाइटों और अख़बारों में पढ़ा-सुना होगा कि कोरोना-संक्रमितों की संख्या 35 हज़ार के आसपास पहुँच गई। परंतु एक ख़ुशी की बात बहुत कम माध्यमों ने बताई होगी कि इन मामलों की डबलिंग रफ़्तार अब 11 से ज़्यादा हो गई है।
कई लोग कहेंगे कि डबलिंग रेट में सुधार से क्या फ़र्क पड़ता है चाहे वह कम हो या ज़्यादा क्योंकि मरीज़ों की संख्या तो तेज़ी से बढ़ ही रही है। मसलन, 20 मार्च को मरीज़ों की संख्या 250 थी जो 23 मार्च को बढ़कर 500 हो गई यानी डबलिंग रेट तब 3 का था। आज दो महीने बाद वह 11 है तो 11 दिनों के बाद मरीज़ों की संख्या 17.5 हजार से बढ़कर 35 हज़ार हुई है। मगर रफ़्तार कम होने से लाभ क्या हुआ - 11 दिनों में 17.5 हज़ार बढ़े जबकि पहले तीन दिनों में केवल 200 बढ़ रहे थे?
पहली नज़र में बात बिल्कुल सही लगती है। लेकिन सच्चाई गहराई में जाने से ही मालूम होगी।
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कोरोना वायरस संक्रामक है, यह तो आप जानते ही हैं। यह ऐसी बीमारी है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में स्पर्श के माध्यम से फैलती है। और यह इतनी तेज़ी से फैलती है कि एक मरीज़ से दो मरीज़ और दो मरीज़ से चार मरीज़ होने में बहुत देर नहीं लगती। बीमारी फैलने की यह स्पीड वाक़ई कितनी हो सकती है, आम आदमी इसका अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता।
क्या कहा, आप लगा सकते हैं? अगर हाँ, तो बताइए कि यदि कोरोना-संक्रमित एक मरीज़ हर रोज़ दो मरीज़ों को संक्रमित करता है और वे दो नए मरीज़ अगले दिन दो और को संक्रमित करते हैं तो एक महीने यानी 30 दिनों में संक्रमितों की संख्या कहाँ तक पहुँच चुकी होगी।
कोई आँकड़ा दिमाग़ में आया? एक लाख, दो लाख, दस लाख, बीस लाख, एक करोड़? जी नहीं, इनमें से एक भी अंदाज़ा वास्तविक संख्या के क़रीब नहीं है। अगर एक मरीज़ महीने की पहली तारीख़ को दो लोगों को संक्रमित करता है और वे दो लोग 2 तारीख़ को दो और को संक्रमित करते हैं और वे चार मरीज़ 3 तारीख़ को चार और को संक्रमित करते हैं तो 30 तारीख़ आते-आते भारत की 80% से ज़्यादा आबादी कोविड-19 से संक्रमित हो चुकी रहेगी - यानी 107 करोड़ लोग संक्रमित हो चुके होंगे (देखें टेबल)।
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यह 1 दिन के डबलिंग रेट का कमाल है कि संख्या 30 दिनों में 1 से 107 करोड़ तक पहुँच गई। क्या हो अगर यह डबलिंग रेट 1 से बढ़कर 2 दिन का हो जाए? यानी कोविड-19 का एक मरीज़ यदि अगले दिन नहीं बल्कि एक दिन छोड़कर दो मरीज़ों को संक्रमित करे और वे दो मरीज़ भी एक दिन छोड़कर चार और मरीज़ों को संक्रमित करें और इसी तरह सिलसिला महीना भर चलता रहे? हमारी गणना के मुताबिक़ तब एक महीने में कोई 33 हज़ार मरीज़ संक्रमित होंगे (देखें टेबल)।
कहाँ 107 करोड़ और कहाँ 33 हज़ार! डबलिंग रेट में केवल एक दिन का अंतर पड़ने से संख्या कहाँ से कहाँ आ पहुँची!
लेकिन 107 करोड़ और 33 हजार के इस अंतर का यह मतलब नहीं कि एक दिन का गैप बढ़ाने से बीमारी कंट्रोल में आ गई क्योंकि दो दिन में दुगुने होने की रफ़्तार अगर जारी रही तो यह 33 हजार की संख्या भी अगले 30 दिनों में 107 करोड़ तक पहुँच जानी है। यानी एक दिन में दुगुने होने से जहाँ एक महीने में कोरोना-संक्रमितों की संख्या 107 करोड़ तक पहुँचती है तो दो दिन में दुगुने होने पर उसी संख्या तक पहुँचने में दो महीने लगेंगे। इसी तरह तीन दिन में दुगुने होने पर तीन महीने में और दस या ग्यारह दिन में दुगुने होने की रफ़्तार रही तो 10 या 11 महीनों में हम इस संख्या तक पहुँच जाएँगे।
लेकिन हमें तो इस संख्या तक पहुँचना ही नहीं है। उससे बहुत पहले रुक जाना है। इसीलिए हमें डबलिंग की रफ़्तार 11 से भी कम करनी है और जल्दी करनी है। इसीलिए सरकार ने लॉकडाउन करके संक्रमित व्यक्ति और असंक्रमित व्यक्तियों में दीवार खड़ी कर दी है ताकि वायरस को असंक्रमित लोगों तक पहुँचने का मौक़ा ही न मिले।
लेकिन फिर भी कुछ लोग तो हर रोज़ संक्रमित हो ही रहे हैं। सरकार इन नए मरीज़ों के संक्रमण की रफ़्तार को कम करने के उपाय कर रही है। और यह रफ़्तार कम हो भी रही है।
हर रोज़ 6% बढ़ रहे हैं मरीज़
अभी कोविड-19 के नए केस आने की दैनिक रफ़्तार 6% के आसपास है। यानी अगर किसी दिन कोरोना मरीज़ों की संख्या 100 है तो अगले दिन 6 नए मरीज़ आ रहे हैं और टोटल संख्या हो जा रही है 106। हमारी पहली मंज़िल फ़िलहाल यह है कि यह प्रतिशत घटना शुरू हो यानी हर 100 मरीज़ों पर रोज़ाना 6 के बजाय 5, 5 के बजाय 4, 4 के बजाय 3 और इस तरह घटते-घटते यह संख्या 0 तक पहुँच जाए। इंतज़ार है उस दिन का जब किसी सुबह देश में कोरोना वायरस से पीड़ित 100 मरीज़ हों तो रात 12 बजे के बाद भी 100 ही रह जाएँ, कोई नया मरीज़ न जुड़े। जब नया मरीज़ नहीं आएगा या इक्का-दुक्का आएगा भी तो हमारा काम केवल मौजूदा मरीज़ों का इलाज करना रह जाएगा।
किसी कारण अगर फ़िलहाल नए मरीज़ों का आना न रुके, फिर भी मरीज़ों की संख्या न बढ़े, इसका भी एक उपाय है। वह यह कि रोज़ जितने नए मरीज़ आएँ, उतने ही पुराने मरीज़ ठीक होकर घर चले जाएँ।
जैसे किसी दिन सुबह यदि देश में 100 मरीज़ हों, उस दिन 2 और मरीज़ आएँ और 2 ही पुराने मरीज़ घर चले जाएँ तो नए मरीज़ आने के बावजूद कुल मरीज़ 100 ही रहेंगे। इन मरीज़ों को ऐक्टिव मरीज़ कहा जाता है। आज भी जब देश में कोरोना-संक्रमण के अब तक 35 हज़ार केस हुए हैं तो ऐक्टिव मरीज़ केवल 24.6 हज़ार हैं। 9 हज़ार के आसपास ठीक हो चुके हैं और 11 सौ के आसपास इस वायरस के कारण अपने प्राण गँवा चुके हैं।
मतलब यह कि कुल मरीज़ों की संख्या घटाने या उसे स्थिर रखने के लिए नया संक्रमण रोकने के साथ-साथ पुराने मरीज़ों का ठीक होना भी ज़रूरी है। और वे हो भी रहे हैं जैसा कि हमने ऊपर देखा। अभी के रेट से कुल कोरोना केस के 26% मरीज़ अब तक ठीक हो चुके हैं। बाक़ी भी होंगे क्योंकि कोरोना पीड़ितों में से 80% लोग बिना इलाज के या हल्के-फुल्के इलाज से 14 दिनों में ठीक हो जाते हैं। बाक़ी 20% को अस्पताल में दाख़िल होने की ज़रूरत होती है। उनमें से भी बहुत कम लोगों को ICU या वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है। बुधवार को ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने बताया है कि अभी जितने मरीज़ हैं, उनमें से केवल 0.33 प्रतिशत मरीज़ वेंटिलेटर पर हैं जबकि 1.5 प्रतिशत मरीज़ ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं और 2.34 प्रतिशत मरीज़ आईसीयू में हैं।
इसलिए कोरोना-संक्रमण की रोज़ बढ़ती संख्या से चिंतित न हों। मामलों के टोटल नंबर पर नहीं, उनके डबलिंग रेट, नए मरीज़ों की वृद्धि दर और ठीक होने वाले मरीज़ों की संख्या पर ग़ौर करें। आप पाएँगे कि हालात धीरे-धीरे ही सही, सुधर रहे हैं।
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