कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए घोषित 21 दिन के लॉकडाउन के दौरान तरह तरह की चुनौतियों, समस्याओं और परेशानियों से रूबरू हो रही जनता पर इसका भयानक मानसिक असर पड़ सकता है। बड़ी संख्या में लोगों के अवसादग्रस्त होने, असामान्य व्यवहार करने अथवा मनोविकार का शिकार होने की आशंका बढ़ गयी है।
इस तरह की मन:स्थिति और अवसाद से उबरने में मनोचिकित्सक की अहम भूमिका होती है, लेकिन देश में इनकी संख्या पर्याप्त नहीं है।
अपर्याप्त मनोचिकित्सक
कोरोना महामारी फैलने से पहले स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का मानना था कि भारत को 13,500 से अधिक मनोचिकित्सकों की आवश्यकता है, लेकिन ऐसा लगता है कि अब इससे कहीं ज्यादा मनोचिकित्सकों की ज़रूरत होगी।
लॉकडाउन के दौरान लंबे समय तक घर की चहारदीवारी में ही रहने वाले व्यक्तियों और छात्र-छात्राओं का व्यवहार असामान्य होने लगे, अनायास ही गुस्सा आने लगे, या लॉकडाउन के दौरान शहरों से गाँव की ओर पलायन करने वाले कामगार अगर अपघात, अवसाद या मनोविकार का शिकार हो जाएं तो इससे निबटना और उनके जीवन को पटरी पर लाना बहुत बड़ी चुनौती होगी।
हेल्पलाइन नंबर
छात्रों की मनोवैज्ञानिक और सामाजिक चिंताओं को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग भी चिंतित है और उसने भी छात्रों के लिए मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन नंबर शुरू करने का निर्देश दिया है।
लॉकडाउन ख़त्म होने पर लोगों के अवसाद ग्रस्त होने या किसी न किसी प्रकार की असुरक्षा को लेकर आशंकित होने के मामले बड़ी संख्या में सामने आने की संभावना है।
ऐसे मामलों से निबटना और अवसाद तथा असुरक्षा की भावना से ग्रस्त छात्र-छात्राओं और दूसरे लोगों को इससे बाहर निकालना बहुत बड़ी चुनौती होगी।
नहीं है इतने मनोचिकित्सक
इस महामारी के संकट के दौरान अवसाद या अज्ञात भय और असुरक्षा की भावना का शिकार हुये व्यक्तियों के मन से असुरक्षा की भावना निकालने और उनमें आत्मविश्वास पैदा करने के लिये बड़ी संख्या में मनोचिकित्कों की जरूरत होगी।
लेकिन, हमारे देश में इस समय अवसाद या मनोविकारों का उपचार करने के लिये पर्याप्त संख्या में न तो मनोचिकित्सक ही हैं और न ही अस्पताल। एक अनुमान के अनुसार, इस समय देश में करीब 6 हज़ार मनोचिकित्सक हैं, जो अपर्याप्त हैं।
यह विडंबना ही है कि हमारे देश में मनोविकार से ग्रस्त व्यक्ति मनोचिकित्सक से सलाह लेने या इलाज कराने के लिये तैयार ही नहीं होते, उनका तर्क होता है कि उन्हें कोई मानसिक बीमारी नहीं है।
लॉकडाउन का सामाजिक असर
लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में हमें यह स्वीकार करना होगा कि कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन जैसे सख्त क़दम उठाये जाने से जनता की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल असर पड़ा है।इसकी परिणति के रूप में समाज के एक बड़े में वर्ग के आचरण और व्यवहार में अजीब किस्म का बदलाव नजर आ सकता है।
इस बदलाव में लोगों के आचरण में आक्रामकता, चिड़चिड़ापन, अनायास ही क्रोध आना, उत्तेजित होना, ख़ुद को औरों से अलग कर लेना और गुमसुम रहने जैसा असामान्य व्यवहार शामिल हो सकता है।
10 फ़ीसदी लोगों में मनोविकार
एक अध्ययन के अनुसार देश में कोरोना वायरस संक्रमण आने से पहले 18 साल की आयु से अधिक उम्र के 10 फ़ीसदी से ज़्यादा लोग किसी न किसी तरह के मानसिक विकार से ग्रस्त थे और 2020 तक बढ़ कर 20 प्रतिशत हो जाने का अनुमान था। लेकिन कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन के कारण परिस्थितियाँ बदल गयी हैं। बदले हुये हालात में अब देश में मनोविकार का शिकार होने वाले व्यक्तियों की संख्या इससे भी अधिक हो सकती है।
इस समय देश के अनेक निजी अस्पतालों में मानसिक विकार से ग्रस्त व्यक्तियों की समस्याओं को ध्यानपूर्वक सुनने, उन्हें परामर्श देने और ज़रूरत पड़ने पर दवा देने के लिये मनोचिकित्सक उपलब्ध हैं। कई ग़ैर सरकारी संगठन भी इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
स्थिति की गंभीरता का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इस समय राज्य सरकारें 41 मानसिक स्वास्थ्य अस्पतालों का संचालन कर रही हैं।
इनके अलावा, 450 मोबाइल उपचार ईकाइयाँ और 250 से अधिक नशामुक्ति केन्द्र भी काम कर रहे हैं, जहाँ मानसिक विकार और अवसादग्रस्त व्यक्तियों का उपचार हो रहा है।
क्या कहना है विशेषज्ञों का?
कॉस्मस इंस्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ एंड बिहेविअरल साइंसेज के निदेशक सुनील मित्तल के अनुसार कोविड-19 महामारी ने एक अप्रत्याशित और असाधारण चुनौती पैदा कर दी है।इस महामारी की विभीषिका की वजह से बड़ी संख्या में लोगों के मानसिक विकार से ग्रस्त होने की आशंका है। इस स्थिति से निबटने में मनोचिकित्सकों की अहम भूमिका होगी, लेकिन देश में इनकी संख्या बहुत ज़्यादा नहीं है।
जी. डी. गोयनका यूनिवर्सिटी में डीन डॉक्टर अंजलि मिड्ढा का कहना है कि इस महामारी की वजह से लोग अनिश्चितता, भय, आशंका और सामान्य जीवन में व्यवधान उत्पन्न होने के बारे में सोच कर परेशान हैं।
डॉक्टर मिड्ढा के अनुसार कोविड-19 का असर लोगों की मन:स्थिति पर पड़ना स्वाभाविक है और हम इससे अछूते नहीं रह सकते।
मौजूदा हालात में भविष्य की कल्पना करके भयभीत होना या अशंकित होना स्वाभाविक है। यही वह क्षण होता है जब व्यक्ति अवसाद, भय, असुरक्षा और अनिश्चितता का शिकार होने लगता है।
ऐसे व्यक्तियों को यह अहसास करना आवश्यक है कि संकट की इस घड़ी में वह अकेला नहीं है
इस महामारी से निबटने के बाद देश और सरकार को बड़ी संख्या में लोगों के अवसादग्रस्त होने या उनके असामान्य आचरण की चुनौती का सामना करने के लिये तैयार रहने की आवश्यकता है।
इस तरह की परेशानियों से ग्रस्त लोगों को यह आश्वस्त करना होगा कि कई चीजें अपने वश में नहीं होती हैं और यह समय भी निकल जायेगा।
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