कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई तो गई थी पार्टी का नया अध्यक्ष चुनने के लिए, लेकिन इस मूल मुद्दे पर चर्चा को छोड़कर बैठक में सब कुछ हुआ। आरोप-प्रत्यारोप, वार-पलटवार। नौबत यहाँ तक आई कि बैठक के बाद ट्वीटरबाज़ी हुई। जमकर पार्टी की फ़जीहत होने के बाद सुलह सफ़ाई की कोशिशें की गईं। कुल मिलाकर लब्लोलुआब यह कि अब तक पर्दे के पीछे पार्टी में चल रही वरिष्ठ और नौजवान नेताओं के बीच की जंग इस बैठक से खुलकर सामने आ गई।
सोनिया की इस्तीफ़े की पेशकश
कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव और पार्टी की कार्यशैली में सुधार को लेकर उठ रही तेज़ आवाज़ के बाद अब लगने लगा था कि कार्यसमिति की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा होगी। लेकिन ऐसा होने की बजाय पार्टी में ख़ेमेबाजी दिखी, आरोपों के कीचड़ उछले और विद्रोह के तेवर तैयार होने लगे। जैसा पहले से तय था, दो दर्जन वरिष्ठ नेताओं की ओर से फुलटाइम कांग्रेस अध्यक्ष की माँग के बाद सोमवार को सोनिया गांधी ने इस्तीफ़े की पेशकश कर दी।
उनके तुरंत बाद बोलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने उन्हें पद पर बरक़रार रहने का आग्रह किया और उसके बाद ए. के. एंटनी समेत कई नेताओं ने भी यही आग्रह किया।
राहुल की फटकार
बैठक में इस बार न किसी ने राहुल गांधी से इस्तीफ़़ा वापिस लेकर दोबारा अध्यक्ष पद संभालने की माँग और न ही किसी ने प्रियंका गांधी से अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी संभालने की गुज़ारिश की। दरअसल इसकी नौबत ही नहीं आई। बैठक में 23 नेताओं की तरफ़ से सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी का मुद्दा हावी रहा।सूत्रों के मुताबिक़, राहुल गांधी ने इस पर तीखी प्रतिक्रया जताते हुए चिट्ठी लिखने वाले वरिष्ठ नेताओं को जमकर आड़े हाथों लिया। राहुल गांधी के तेवर काफ़ी तीखे थे और लहज़ा काफ़ी तल्ख़ था। इसी बीच इस ख़बर ने पार्टी में तूफ़ान खड़ा कर दिया कि राहुल ने चिट्ठी लिखने वाले नेताओं पर बीजेपी से सांठगांठ का आरोप लगाया है।
सिब्बल का ट्वीट
इसके बाद तो पार्टी अध्यक्ष के चुनाव का मुद्दा गौण हो गया और राहुल बनाम वरिष्ठ नेताओं के बीच जंंग ही मुख्य मुद्दा बन गई। बैठक के बाद कपिल सिब्बल ने ट्वीट करके राहुल पर सीधा तंज़ कसा। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने चुनौती दी कि अगर बीजेपी से उनकी सांठगांठ साबित हो गई तो वह इस्तीफ़़ा दे देंगे।मामला तूल पकड़ता, इससे पहले ही पार्टी की तरफ़ से मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजदेवाला ने सफ़ाई दी कि राहुल ने बीजेपी से सांठगांठ का आरोप नहीं लगाया है। राहुल ने भी कपिल सिब्बल को फ़ोन करके सफ़ाई दी। इस पर कपिल सिब्बल ने अपना तंज कसने वाला ट्वीट हटा लिया। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने भी दावा किया कि राहुल ने बीजेपी से सांठगांठ वाली बात नहीं कही। इसे पार्टी में ‘डैमेज़ कंट्रोल’ की क़वायद माना जा रहा है।
पार्टी के लिए यह चिंता की बात यह है कि अगर राहुल गांधी ने कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वालों पर बीजेपी से सांठगांठ का आरोप नहीं लगाया था तो फिर मीडिया को यह झूठी ख़बर किसने लीक की?
ख़बर लीक कैसे हुई?
मीडिया ने भी बग़ैर इसकी सच्चाई जाने यह ख़बर कैसे चलाई? अगर यह ख़बर झूठी है तो फिर क्या कांग्रेस अपने नेता से हवाले से इतनी बड़ी झूठी ख़बर चलाने वाले मीडिया घरानों के ख़िलाफ़ कोई क़ानूनी कार्रवाई करेगी? कपिल सिब्बल कार्यसमिति में नहीं हैं। लिहाज़ा उन्हें कार्यसमिति में हुई बातों की जानकारी मीडिया से ही मिली। इस आधार पर उन्होंने राहुल पर तंज़ करते हुए ट्वीट किया और बाद में राहुल गांधी के फ़ोन के बाद उसे हटा भी लिया। यहाँ सवाल यह उठता है कि ग़ुलाम नबी आज़ाद तो बैठक में मौजूद थे। उन्हें पक्के तौर पर पता होगा कि राहुल ने बीजेपी से सांठगांठ की बात कही है या नहीं। अगर नहीं कही तो आज़ाद ने बीजेपी से सांठगांठ साबित होने पर इस्तीफ़ा देने की बात क्यों कही। उन्हें पहले ही कह देना चाहिए था कि राहुल ने ऐसा नहीं कहा।
पार्टी की तरफ़ से आधिकारिक खंडन किए जाने के बाद ही उन्होंने राहुल को क्लीन चिट क्यों दी? क्या आज़ाद पार्टी का ‘डैमेज़ कंट्रोल’ क़वायद का हिस्सा बनकर अब राहुल को फ़जीहत से बचा रहे हैं?
हंगामा क्यों है बरपा?
अगर राहुल गांधी ने ‘वो बात’ कही है जिस पर पार्टी में हंगामा मचा हुआ है तो देर-सबेर उसका वीडियो सामने आ ही जाएगा, क्योंकि हर वीडियो मीटिंग की रिकॉर्डिंग होती है। यह क्लाउड पर मौजूद रहती है और बैठक आयोजित करने वाले को इसकी कॉपी भेजी जाती है।
भटक गई है कांग्रेस?
23 नेताओं ने सोनिया गांधी को को चिट्ठी लिख कर ‘पूर्णकालिक’ अध्यक्ष और हर समय कार्यकर्ताओं के लिए पार्टी मुख्यालय में मौजूद रहने वाले नेता को पार्टी की कमान सौंपने की माँग की है। इससे साफ़ जाहिर है कि नेता राहुल गांधी का बतौर अध्यक्ष वापसी के ख़िलाफ़ है।
राहुल गांधी पर ही यह अंशकालिक राजनीतिज्ञ और कार्यकर्ताओं की पहुँच से दूर रहने वाले नेता होने के आरोप लगते रहें हैं। इन नेताओं का इशारा साफ़ है। इसी लिए राहुल गांधी इन पर भड़के हुए है।
पैर पर कुल्हाड़ी मारी?
सवा साल में कांग्रेस नए अध्यक्ष का चुनाव नहीं करके पहले ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार चुकी है। इस सवा साल में पार्टी पूरी तरह दिशाहीन नज़र आती है। सोनिया गांधी अपनी लगातार ख़राब चल रही तबीयत की वजह से उतनी सक्रिय नहीं हैं। तमाम वरिष्ठ नेता आगे बढ़कर कोई बड़ा फ़ैसला करने हिम्मत नहीं जुटा पाते।
इस डर से कि कहीं उनका कोई क़दम उनके नेताओं के खल न जाए। अंदर ही अंदर पनप रही कुंठा चिट्ठियों के ज़रिए नाराज़गी बनकर बाहर रही है। कोई किसी का नाम नहीं लेता। लेकिन पता सबको है कि कौन सी बात किसे और क्यों कही जा रही है।
सब अपनी- अपनी राजनीति कर रहे हैं। सबको अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता है। जिन्हें पार्टी में रहना है, वे यह देख कर ही कोई फ़ैसला कर रहे हैं कि उन्हें किसके साथ रहने में फ़ायदा है। जिन्हें पार्टी में अपना कोई भविष्य नज़र नहीं आ रहा वह बाहर अपना उज्जवल भविष्य तलाश कर रहे हैं।
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