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अकबर, चेतन, नाना, आलोक और स्त्री

लेखक-पत्रकार से राजनेता बने एम जे अकबर ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली एक महिला के ख़िलाफ़ मानहानि का मुक़दमा दायर कर दिया है। इसके अलावा लेखक चेतन भगत का कहना है कि उत्पीड़ित तो वे हैं, महिला नहीं। उन्होंने शिकायत करने वाली महिला के ख़िलाफ़ मामला तो दायर नहीं किया है, पर दोनों की मानसिकता एक है। रसूखदार और ताक़तवर लोग या सत्ता के नज़दीक रहने वाले अपनी स्थिति का फ़ायदा उठा कर महिलाओं को ही कटघरे में खड़े कर रहे हैं। पढ़िए, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का विश्लेषण:
क़मर वहीद नक़वी
Akbar, Chetan, Nana and the women - Satya Hindi
प्रिया रमानी और एम. जे. अकबर
आख़िर एमजे अकबर ने अपना मुँह खोल ही दिया। जो बोला वह उनके क़द से मेल नहीं खाता। हालाँकि जो किया, वह तो क़तई उनकी गरिमा से मेल नहीं खाता। आवाज़ उठाने वाली महिला पर मुक़दमा ठोक दिया। यह भी कहा कि चुनाव से पहले ये शिकायतें उछली हैं, ज़रूर इनके पीछे कोई एजेंडा है। अब और हस्तियाँ भी आहत महिलाओं को अदालत में घसीटेंगी। ‘संस्कारी’ अभिनेता आलोक नाथ पहल कर चुके हैं। पर अकबर अकबर हैं। नामी और क़ाबिल पत्रकार। जिसने एक दशक तक राज किया। पत्रकारिता में कम उम्र में तहलका मचा दिया। राजनीति में जब भी गये मात खाई। पहली बार कांग्रेस में शामिल हुये। गांधी की मौत के साथ साथ उनकी भी राजनीतिक मौत हो गई। दुबारा पत्रकारिता में आये। फिर राजनीति में गये  उस पार्टी में जिसकी ज़िंदगी भर आलोचना करते रहे थे। मंत्री भी बन गये। क़िस्मत का खेल देखिये अतीत उन्हे डँसने के लिये सामने खड़ा हो गया। कम-से-कम बारह महिलाओं ने उन पर छेड़खानी और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये हैं। पहले वे शांत रहे। फिर उलटी कर दी।  देश लौटते ही कहने लगे कि चुनाव के पहले कोई एजेंडा काम कर रहा है। यह उन्होंने नहीं बताया कि इतनी बड़ी संख्या में महिलायें उनके खिलाफ षडयंत्र क्यों रचेंगी ? इससे उनको क्या राजनीतिक लाभ मिलेगा ? विभिन्न क्षेत्रों की और हस्तियों पर भी तो दर्जनों शिकायतें महिलाएँ सामने लाई हैं। 
Akbar, Chetan, Nana and the women - Satya Hindi
चेतन भगत और इरा त्रिवेदी

चेतन भगत पीड़ित हैं?

अकबर की  तरह चेतन भगत भी महिलाओं पर आरोप लगा रहे हैं। पुराने मेल ट्विटर पर डाल साबित करना चाहते हैं कि महिलायें मिथ्या प्रचार कर रही हैं। चेतन ये साबित करने में लगे हैं कि दरअसल आरोप लगाने वाली महिला उनको “आई मिस यू, आई किस यू” कह रही है । वे कहना चाहते हैं कि हकीकत में तो वही पीड़ित है? मी-टू कैंपेन के ज़रिये महिलायें उनको निशाना बना रही हैं। चेतन ने अभी तक मानहानि का मुक़दमा नहीं किया है। पर मानसिकता तो वही है। ये सारे कामयाब लोग है। ताक़तवर हैं। अपना प्रभामंडल है, जिससे सहज आकर्षण संभव है। ऐसे में कोई महिलाएँ उनके निकट  भी आई होंगी और इस आशंका से भी इंकार नहीं कि इस आकर्षण का लाभ उठाने का प्रयास उन्होने किया होगा।  आकर्षण और फ़ायदे के बीच सूत भर का अंतर है। इस सूत का नाम है “सहमति”। राम मनोहर लोहिया कहते थे कि स्त्री पुरूष के बीच धोखे और बलात्कार के अलावा सारे रिश्ते जायज़ हैं। अगर दो वयस्क अपनी सामाजिक सीमाओं को लाँघ कर क़रीब आना चाहते है तो दूसरों को उस पर आपत्ति करने का कोई हक नहीं है। बस, सवाल सहमति का है। 
जिन महिलाओं ने अकबर, चेतन, नाना और आलोक पर आरोप लगाये वो साफ कहती हैं कि उन की सहमति के बग़ैर पद के चुंबकत्व की आड़ में फ़ायदा उठाने की कोशिश की गई। पर चेतन उलटी गंगा बहाने में लगे हैं। वो लड़की को ही दोष देते हैं। वो कहीं न कहीं लड़की के चरित्र पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं।

'द एक्यूज़्ड'

चेतन को बताने की ज़रूरत नहीं है कि अमेरिका में 1988 में एक फिल्म आयी थी - “एक्यूज्ड”। एक ऐसी लड़की की कहानी जो भड़काऊ कपड़े पहनती है, शराब पीती है और लड़कों से चुहल करती है। फिर लड़के उससे गैंग रेप करते हैं  लड़कों को ज़िम्मेदार ठहराने की जगह ग़लती जूडी फोस्टर यानी लड़की की मान ली जाती है।
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'द एक्यूज्ड' फिल्म की नायिका पर आरोप लगा कि उन्होंने बलात्कार के लिए लड़कों को उकसाया थ।
पूरा मुक़दमा इस बात पर आ टिकता है कि लड़की की सहमति से सेक्स हुआ या नहीं। लड़की अंत में मुक़दमा जीत जाती है क्योकि उससे ज़बर्दस्ती की गई, उसकी मर्ज़ी के बग़ैर। ये तय हुआ कि अपराध के लिये लड़की को इसलिये ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योकि उसने भडकाऊ कपड़े पहने थे या वो बिंदास लड़कों से घुली मिली थी। इस फिल्म ने वो महीन रेखा खींची । हिंदुस्तान में भी हाल में लगभग इसी तर्ज़ पर एक फिल्म आई जिसका नाम है “पिंक”। इस फिल्म में भी ये  कहा गया है कि लड़की शराब पीकर भले ही देर रात लड़कों के साथ पार्टी करे पर इस नाते लड़के उससे ज़ोर ज़बर्दस्ती नहीं कर सकते। लड़की जिस पल “ना”कहती है उस के बाद लड़कों को रुकना होगा और “ना” के बाद अगर नहीं रुके तो उनकी हरकत को क़ानूनन ग़लत माना जायेगा । 
चेतन शादीशुदा हैं। वे जानते हैं कि पति-पत्नी दिन में कई बार “आई मिस यू और आई किस यू” बोलते हैं। तो क्या इस वाक्य की आड़ में पत्नी की मर्ज़ी के बिना उससे शारीरिक संबंध बनाया जा सकता है? क्या संसर्ग में उसकी राय की कोई अहमियत नहीं है क्योंकि वह आई मिस यू या आई किस यू कहती रही है?
यह बात चेतन जैसे मर्द को कब समझ में आयेगी कि स्त्री के शरीर पर सिर्फ़ और सिर्फ़ उसका अधिकार नहीं है। पत्नी हो या गर्ल फ़्रेंड, उसके शरीर पर न तो उसके पति का अधिकार होता है और नही उसके ब्याय फ़्रेंड का । स्त्री की इजाज़त के बिना किसी भी तरह की हरकत नाजायज़ है। ये न केवल उसकी निजता का हनन है बल्कि स्त्री को अपनी संपत्ति मानने की कुत्सित मानसिकता का भी प्रमाण है। पति भी पत्नी की सहमति के बग़ैर उससे संबंध नहीं बना सकता। 

'वैवाहिक बलात्कार'

दुर्भाग्य से जब देश में “वैवाहिक बलात्कार” को क़ानूनी रूप देने का प्रयास किया गया तो मर्दवादी पुरूषों ने ये कहकर ख़ारिज कर दिया गया कि इससे  विवाह नामक संस्था टूट जायेगी। ये सोच दो चीज़ों की तरफ इशारा करती है। एक, समाज अभी भी सिर्फ पुरूषों के हक में सोचता है। स्त्री पर पुरूष की ज़बर्दस्ती को जायज़ मानता है। ये बात संविधान की मूल आत्मा कि कानून की नज़र में सब बराबर है, का खुला उल्लंघन है। 
Akbar, Chetan, Nana and the women - Satya Hindi
अगर दोनों बराबर है तो बिस्तर में स्त्री पर पुरूष की ज़बर्दस्ती कैसे जायज़ हो सकती है? और क्यों न बिस्तर में ज़बर्दस्ती करने के लिये पति को वही सज़ा मिले जो बलात्कारी को मिलती है? दो, विवाह जैसी संस्था के बने रहने के लिये स्त्री को ही सहना होगा। पुरुष तो समाज का लाडला है। अगर पुरूष स्त्री की ज़बरदस्ती का शिकार होता तो क्या तब भी सारे पुरूष विवाह नामक संस्था को बचाने की वकालत करते? कदापि नहीं।

राम को भी देनी होगी अग्नि परीक्षा!

आख़िर दहेज कानून को कमजोर कर ही दिया गया। मेरा मानना है कि स्त्री को बचाने के लिये, सदियों की प्रताड़ना को ख़त्म करने के लिये अगर विवाह नामक संस्था ख़त्म होती है तो ख़त्म हो जाये। और अगर नही ख़त्म होती है तो वह अपने अंदर बदलाव लाये। क्योंकि हर बार सीता ही क्यों अग्नि परीक्षा दे? राम को भी अग्नि परीक्षा देनी होगी। क्योंकि स्त्री सिर्फ़ देह नहीं है। वह श्वास और स्पंदन भी है। उसमे भी चेतना है। उसकी भी इच्छायें है। पुरूष से अलग उसका अपना अस्तित्व है। वह सिर्फ़ सहती नहीं है, सोचती भी है। चेतन, नाना, अकबर और आलोक जैसों को जितनी जल्दी यह बात समझ में आ जाये, बेहतर है। 
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